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________________ 200 VAISHALI INSTITUTE RESEARCH BULLETIN NO. 2 मरीचि के भव का उल्लेख सभी ग्रन्थों में है। उत्तरपुराण में कौशिक के बदले जटिल का नाम आता है। प्राचीन ग्रन्थों में पूसमित्त (पुष्यमित्र) है तो वाद के ग्रन्थों में पुष्पमित्र का नाम है। इसके बाद उत्तरपुराण में दो पात्रों और देवकल्पों के नामों का आवश्यक-निर्युक्त के नामों के साथ भेद पाया जाता है । आगे और भी वैसे ही नाम-भेद मिलते हैं। इस प्रकार दोनों परम्पराओं में भवों की संख्या और नामों में थोड़ा-सा अन्तर अवश्य पाया जाता है। ___'कुवलयमाला' नामक उद्योतनसूरि के महाकथा ग्रंथ में भ० महावीर के चरित का अथवा उनके पूर्वभवों का कोई प्रसंग नहीं है। कुवलयमाला की कथा के अन्तर्गत जो पात्र आते हैं उनमें से मुख्य पात्र कथा-नायक कुवलयचन्द्र के पूर्व भव और अागामी भव का वर्णन आता है । उसके इस दोनों भवों में भ० महावीर का जीव ही उसे प्रतिबोध देता है और कुवलयचन्द्र के अन्तिम भव में भगवान महावीर स्वयं उसे अर्थात् मणिरथकुमार को दीक्षा देते हैं और वह तपश्चर्यामय जीवन विताकर मुक्ति प्राप्त करता है। नीचे भ० महावीर के एक पूर्व-भव के रूप में राजकुमार अनंगकुमार की कथा है। और उनके अनेक पूर्व-भवों की तालिका दी गयी है। इस तालिका के अनुसार यह नाम अनंगकुमार किसी भी अन्य ग्रंथ में भ) महावीर के किसी भी भव के रूप में हमको नहीं मिलता है। संभवतया भ० महावोर का यह पूर्व-भव एक नया भव है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522602
Book TitleVaishali Institute Research Bulletin 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorG C Chaudhary
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1974
Total Pages342
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationMagazine, India_Vaishali Institute Research Bulletin, & India
File Size7 MB
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