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________________ भ० महावीर का एक नया पूर्व-भव 199 उल्लेख नहीं है । छठें पूस मित्र के भव का भी उल्लेख नहीं है । त्रिपृष्ठ के पश्चात् एक नरक भव का उल्लेख करके उसके वाद के भवों के नाम नहीं दिये गये हैं । सिर्फ ऐसा ही कहा गया है कि अनेक भवों के वाद पुष्पोत्तर विमान से देवानंदा के गर्भ में आये । जिनसेन के आदिपुराण में मरीचि को महावीर के पूर्वभवों में नहीं बताया गया है । गुणभद्र ने उत्तरपुराण' में महावीर के पूर्व भवों को मरीचि तक जोड़ा है । 1 3 वैसे सर्व प्रथम ग्रन्थ आवश्यक - । क- नियुक्ति है जिसमें भ० महावीर के २६ पूर्व-भवों को गिनाया गया है अन्तिम भव देवानन्दा की कुक्षि से जन्म लेना है । ग्रावश्यक - चूर्णि भी इसके साथ सहमत है । आवश्यक- दीपिका " में यह संख्या २७ है और त्रिशला माता की कुक्षि में जो स्थलान्तरण किया जाता है वह भी एक भव माना गया है । कल्प- सूत्र पर रची गयी श्रीलक्ष्मणवल्लभ की वृत्ति में भी २७ पूर्वभव हैं परन्तु उसके अनुसार कौशिक ब्राह्मण और पुष्पमित्र के बीच में एक अधिक देव भव बताया गया है और इस तरह देवानन्दा की कुक्षि से जो जन्म हुआ वही भ० महावीर का सत्ताईसवाँ भव माना गया है। महावीर चरियं में २१ वें और २२वें भव के बीच में कुछ अस्पष्टता है और एक भव वहाँ पर और जोड़ा गया मालूम होता है । देवानन्दा की कुक्षि से जन्म लेना २७ वाँ भव गिनाया गया है । उत्तरपुराण में कुल ३३ भवों का वर्णन मिलता है । श्रावश्यकनियुक्त के २१ वें और २२ वें भव के बीच में छः अन्य भव बताये गये हैं । सबसे पहले पूर्व भव में ग्रर्थात् सम्यक्त्व प्राप्ति के प्रसंग पर आवश्यक - नियुक्ति में उस पात्र का नाम नहीं दिया गया है । आवश्यक भाष्य और चूर्णि में उसे 'गामस्स चितओ' (ग्रामस्य चिन्तक: ) अर्थात् गाँव का मुखिया कहा गया है । हरिभद्रीय टीका' और मलयगिरि की आवश्यक टीका में उसे 'बलाहिओ' अर्थात् सैन्य का अधिपति कहा गया है । आवश्यकदीपिका १० और महावीरचरियं में उसका नाम ' नयसार' दिया गया है । उत्तरपुराण'' में उसका नाम 'पुरुखा' है जो एक भिल्लाधिपति है । यह 'बलाहि' के साथ मेल खाता है । दोनों परम्पराओं में कुछ घटना -भेद के साथ एक साधु को बचाने के कारण और उससे उपदेश प्राप्त कर सम्यक्त्व प्राप्त करने का उल्लेख है । १. ७६. ४३४-५४३. २. श्रीदलसुखभाई मालवणिया द्वारा संग्रहीत सामग्री का भी उपयोग किया गया है अतः उनका आभार मानता हूँ । —लेखक ३. गा. १४६-४५१ ‘आवश्यक नियुक्ति के समान ही दिगम्बर-ग्रन्थ 'मूलाचार' में पूर्व-भवों का उल्लेख नहीं मिलता है । पृ० १२८-२३६. ४९-८७. ४. ५, ६. पृ० १२-१५. ७. पृ० १२८. Jain Education International ८. पृ० १०८. ९. पृ० १५२. १०. पृ० ४९. ११. ७४.१४-२२. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522602
Book TitleVaishali Institute Research Bulletin 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorG C Chaudhary
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1974
Total Pages342
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationMagazine, India_Vaishali Institute Research Bulletin, & India
File Size7 MB
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