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VAISHALI INSTITUTE RESEARCH BULLETIN NO. 2
तो भी 'नद्या नवघटे जलम्' वाली उक्ति के अनुसार विषय के प्रस्तुतीकरण में अवश्य ही निम्न प्रकार के वैशिष्ट्य दृष्टिगोचर होते हैं :
१ - सिद्धान्त - प्रस्फोटन के लिए आख्यान का प्रस्तुतीकरण.
२ - बहुमुखी प्रतिभा द्वारा सिद्धान्तों का सरल रूप में प्रस्तुतीकरण. ३ - विषयों का क्रम - नियोजन.
४- दार्शनिक विषयों का काव्य के परिवेश में प्रस्तुतीकरण.
५- आचार के क्षेत्र में मौलिकता का प्रवेश.
महाकवि रइधू ने अपने समस्त वाङ्मय में चार भाषाओं का प्रयोग किया है – संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश एवं हिन्दी । संस्कृत में कवि ने कोई स्वतन्त्र रचना नहीं को, किन्तु ग्रन्थों की सन्धियों के आदि एवं अन्त में आदिमंगल या आशीर्वादात्मक विचार संस्कृत के आर्या, वसन्ततिलका, मालिनी, इन्द्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, मन्दाक्रान्ता, शिखरिणी, स्रग्धरा, शार्दूलविक्रीडित जैसे विविध श्लोकों के माध्यम से व्यक्त किए हैं । उपलब्ध ग्रन्थों में से ऐसे श्लोकों की संख्या १२० के लगभग है । श्लोकों की संस्कृत भाषा पाणिनि सम्मत ही है, किन्तु कहीं-कहीं उस पर प्राकृत - अपभ्रंश का प्रभाव भी दृष्टिगोचर होता है ।
धू की प्राकृत रचनाओं में शौरसेनी प्राकृत का उसमें क्वचित् अर्धमागधी एवं महाराष्ट्री के शब्द प्रयोग भी
कवि की एक रचना हिन्दी में भी उपलब्ध है । यद्यपि वह अत्यन्त लघुकृति है, जिसमें मात्र ३६ पथ हैं, किन्तु भाषा, विधा एवं छन्दरूपों की दृष्टि से वह महत्त्वपूर्ण कृति है । उस रचना का नाम है - - ' बारा - भावना' । इसमें दोहा - चौपाई - मिश्रित गीता - छन्द में द्वादशानुपेक्षात्रों का बड़ा ही मार्मिक वर्णन किया गया है । इस रचना की हिन्दी अपभ्रंश से प्रभावित है और उसके 'करउ,' 'केरउ', केरो' जैसे परसर्गों के प्रयोग उपलब्ध हैं । उसमें राजस्थानी, व्रज, बुन्देली, एवं वधेली शब्दों के प्रयोग भी प्राप्त होते हैं । वस्तुतः कवि की इस लघुकृति में प्राचीन हिन्दी के विकास की एक निश्चित परम्परा वर्तमान है ।
प्रयोग मिलता है | दृष्टिगोचर होते हैं ।
महाकवि रइधू मूलतया ग्रपभ्रंश के कवि हैं । अतः उनकी तीन कृतियाँ छोड़कर शेष सभी अपभ्रंश भाषा-निवद्ध हैं । उनकी अपभ्रंश परिनिष्ठितअपभ्रंश है, पर उसमें कहीं-कहीं ऐसी शब्दावलियाँ भी प्रयुक्त हैं जो आधुनिक भारतीय भाषाओं की शब्दावली से समकक्षता रखती हैं। उदाहरणार्थं कुछ शब्द यहाँ प्रस्तुत हैं :
टोपी, मुग्गदालि (मूंग की दाल ), लइगउ ( ले गया ), साली ( पत्नी की वहिन), पटवारी, बक्कल (बुन्देली - बकला - छिलका), ढोर, जंगल, पोटलु ( पोटली ), खट्ट (खाट), गाली, झड़प्प, खोज्ज ( खोजना ), लक्कड़ी, पीट्टि ( पीटकर ), ढिल्ल ( ढीला ) आदि ।
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