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________________ 168 VAISHALI INSTITUTE RESEARCH BULLETIN NO. 2 आचार्य के "आराधना (सार) पाहड़" का भी उल्लेख मिलता है। उसके बाद और जिनसेन के पूर्व आराधना-विषयक और भी साहित्य लिखा गया है।' ४. यह अधिक सम्भव है कि शिवकोटि नाम का कोई दूसरा प्रभावक आचार्य हुआ हो जिसने कुन्दकुन्द और शिवार्य जैसे अन्य लेखकों के ग्रन्थों का अध्ययन कर अपने उपदेश से जीवों का कल्याण किया हो अथवा किसी अन्य ग्रन्थ का निर्माण किया हो जो आज उपलब्ध नहीं हो। ५. शिवार्य का उल्लेख शिवकोटि के नाम से नहीं किया जा सकता। स्वयं शिवार्य ने भी ऐसा कोई उल्लेख नहीं किया। शिवार्य और जिनसेन के मध्यवर्ती आचार्यों ने भी शिवार्य को शिवकोटि के नाम से कहीं भी स्मरण नहीं किया। ६. पं० आशाधरजी (१३ वीं शती) ने भगवती आराधना की अपनी टीका 'मूलाराधनादर्पण' में ग्रन्थकार का नाम शिवकोटि अवश्य सूचित किया है। पर निश्चित ही जिनसेन के उक्त उल्लेख से भ्रमित होकर ही उन्होंने ऐसा लिखने का साहस किया है। वैसे अन्य कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं है। अतः हमारा यह अभिमत है कि जिनसेन द्वारा उल्लिखित शिवकोटि शिवार्य नहीं है। वे दोनों पृथक्-पृथक् व्यक्ति कहे जा सकते हैं । ७. शिवार्य के गुरु कौन थे, यह भी विवादग्रस्त है। शिवार्य ने अपनी प्रशस्ति में जिन तीन आचार्यों का नामोल्लेख किया है उन्हीं के पादमूल में बैठकर शिवार्य ने ज्ञानाराधना को है, यह स्पष्ट है। यह आश्चर्य का विषय है कि भगवती आराधना को छोड़कर एतद्विषयक उल्लेख अन्यत्र नहीं मिलते । सम्भव है, उनका कार्यकाल अत्यल्प रहा हो और कोई विशेष उपलब्धि उनकी न रही हो। ८. भट्टारक प्रभाचन्द्र के पाराधना कथाकोश, ब्रह्मचारी नेमिदत्त के आराधनाकथाकोश तथा देवचन्द्रकृत कन्नड़ ग्रन्थ राजवलीकथे में शिवकोटि को समन्तभद्र का शिष्य बताया है। पर आश्चर्य का विषय है कि स्वयं शिवार्य ने समन्तभद्र का उल्लेख कहीं नहीं किया। यदि वे उनके शिष्य होते तो पूर्वोक्त तीनों आचार्यों के साथ वे उनका नामोल्लेख क्यों नहीं करते? अतः ऐसा प्रतीत होता है कि जिनसेन ने जिस शिवकोटि का नामोल्लेख किया है उसका सम्वन्ध उत्तरवर्ती आचार्यों ने शिवार्य से अकारण ही जोड़ दिया जो तथ्ययुक्त नहीं है । कथाकोशों को पूर्णत: ऐतिहासिक भी नहीं स्वीकार किया जा सकता। फिर शिवार्य समन्तभद्र के शिष्य थे, यह अन्य किसी प्रमाण से पुष्ट भी नहीं है। १. प्रवचनसार, डॉ० ए० एन० उपाध्ये, भूमिका, पृ० २५, फुटनोट नं० १. २. बृहत्कथाकोश, डॉ० एन० उपाध्ये, भूमिका, पृ० ४८-९. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522602
Book TitleVaishali Institute Research Bulletin 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorG C Chaudhary
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1974
Total Pages342
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationMagazine, India_Vaishali Institute Research Bulletin, & India
File Size7 MB
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