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________________ 164 VAISHALI INSTITUTE RESEARCH BULLETIN NO. 2 परिशिष्ट (१) यदि पल्लव जैसे कोमल करों द्वारा वजाई जानेवाली अति मधर वीणा को लोग सुनते हैं तो क्या साधारण स्त्रियों के क्रीड़ा-विनोद में बजनेवाले करट (ढोल) रव को न सुना जाए ?.......।१०। (२) सामोर मूलस्थानं नाम नगरं वर्तते । धवल तुंग प्राकार स्त्रिपुरैश्च मंडितं वर्तते ।......।४२। (पथिक वोला) कमलदलनयने ! मेरे नगर का नाम साम्बपुर है। वह नगर सुखी (?) नगर जनों से भरा है और धवल तुंग प्राकारों और त्रिपुरों से मंडित है ।.......।४२। (३) यदि विचक्षणः सह पुरांत: परिभ्रम्यते तदा मनोहरछंदसा मधुरं प्राकृतं श्रूयते ।........।४३ यदि चतुर व्यक्तियों के साथ नगर में प्रवेश किया जाय तो मधुरतर मनोहर प्राकृत छंद सुनाई देते हैं ।......।४३। (४) मदनपट्ट कुचस्थलं मृगनाभिपंकांकितं वर्तते । अन्यस्या भालं तीक्ष्णेन तिलकेनालंकृतं वर्तते ।.......।४८। किसी का मदनपट्ट मृगनाभि से चचित है, किसी ने अपना भाल (या स्तन भार) तिरछे तिलक से अलंकृत कर रखा है। .. ...।४८। (५) काचिद् रमणभारं गुरुविकटमतिस्थूलत्वात् कष्टेन विति । तस्याश्चलंत्या उपानहाश्चमशब्दों अतिमंथरस्त्वरितं न सरति ।......'५०। कोई रमणी गुरुविकट रमण-भार (नितम्ब) को अत्यन्त कष्ट से धारण कर रही है, जिससे उसकी गति में विस्मयकारक अथवा लीलायित गति प्रा गई है ।.......।५०। (६) हे प्रिय ! मम हृदयं स्वर्णकार इव वर्तते, यथा स्वर्णकारः प्रियोत्कंठया अभीष्टलाभेच्छया स्वर्णमग्निना दग्ध्वा जलेन सिंचति तथा शरीरं स्वर्ण प्रियविरहाग्निना दग्ध्वा पुनः संगमाशा जलेन सिंचति ।......1१०८। सुनार की तरह पहले मेरा हृदय प्रिय की उत्कंठा उत्पन्न करता है फिर गिरह की अग्नि में (मुझे) जलाकर आशा जल से सींचता है। .... 1१०८। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522602
Book TitleVaishali Institute Research Bulletin 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorG C Chaudhary
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1974
Total Pages342
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationMagazine, India_Vaishali Institute Research Bulletin, & India
File Size7 MB
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