SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 169
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 160 VAISHALI INSTITUTE RESEARCH BULLETIN NO. 2 उद्देश्य मानस के कवि की तरह अात्मसुख अथवा प्रात्मप्रबोध' की प्राप्ति नहीं अपितु आत्मविज्ञापन है। इस उद्देश्य भिन्नता के कारण भी चरित्र-चित्रण में भिन्नता आ गयी है। इसी प्रकार इस जनरामायण काव्य का उद्देश्य भी मानस की तरह मर्यादापुरुषोत्तम राम के आदर्श-चरित्रों के प्रति जन-जीवन को आकृष्ट करना नहीं, अपितु ब्राह्मण-परम्परा द्वारा स्वीकृत चारित्रिक मान्यताओं का खण्डन करना है । यद्यपि यह खण्डन भी मात्र खण्डन के लिए ही किया गया है, इसके द्वारा किसी आदर्श चरित्र की स्थापना नहीं हो सकी है। हाँ, कुछ अलौकिक वातों को लोक के धरातल पर लाने की चेष्टा अवश्य हुई है। इस प्रकार हम पाते हैं कि जैन परम्परा द्वारा स्वीकृत मान्यताएँ तथा कवि और काव्य के उद्देश्य ही प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से पउमचरिउ (पद्मचरित) में चरित्र-चित्रण के मानदण्ड बन गये हैं। १. बाल० श्लोक ७, उत्तर० श्लोक अंतिम-१. २. पउम० १११।१९. ३. पउम० १।९।९, १।१०।१-९. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522602
Book TitleVaishali Institute Research Bulletin 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorG C Chaudhary
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1974
Total Pages342
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationMagazine, India_Vaishali Institute Research Bulletin, & India
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy