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गृहस्थ-धर्म'
- नथमल टाटिया
(महावीर, बुद्ध, मनु और गांधी द्वारा प्रतिपादित) १. वर्धमान महावीर का श्रावक धर्म :
जैन धर्म निवृत्ति-प्रधान धर्म है। वर्धमान महावीर द्वारा प्रतिपादित गृहस्थ-धर्म का स्वरूप उनके साधु-धर्म का ही एक स्थूल रूप है । साधुओं के लिए अमर्यादित अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह व्रतों का विधान किया गया है, और गृहस्थों के लिए उन्हीं व्रतों का सीमित रूप में विधान किया गया है। साधुनों के लिए मानसिक, वाचिक और कायिक हिंसा, असत्य आदि निषिद्ध हैं तथा ऐसे कर्म स्वयं करना, दूसरे से कराना, तथा करते हुए का अनुमोदन करना भी उनके लिए निषिद्ध है। गृहस्थों के लिए सांसारिक सभी कर्मों से इस प्रकार निवृत्ति संभव नहीं, अतएव ऐसे कर्मों की सीमा निर्धारित करने का उन्हें उपदेश दिया गया है । इस दृष्टि से गृहस्थों के लिए और भी कई व्रतों का विधान किया गया है। उपासकदशा नामक सप्तम अर्धमागधी प्रागम के प्रथम अध्ययन में गृहस्थों के लिए निम्नांकित द्वादशविध गृहधर्म विहित है--पांच अणुव्रत और सात शिक्षाव्रत।
पांच अणुव्रत इस प्रकार हैं-(१) स्थूल प्राणातिपात (हिंसा) से विरति अर्थात् यावज्जीवन मन, वचन और कार्य से न स्वयं ऐसी हिंसा करना, न दूसरे से करवाना। जीवन धारण के लिए अनिवार्य हिंसा (प्रारम्भजा एवं विरोधजा२) से बचना गृहस्थ के लिए संभव नहीं, अतएव यथाशक्ति संकल्प-मूलक हिंसक प्रवृत्ति से विरत रहना ही विहित है। किसी प्राणी का बन्धन, वध, या उस पर अतिभार-पारोपण प्रादि इस व्रत के अतिचार माने गये हैं। (२) स्यूल मृषावाद से विरति । गुप्त बातों को कह देना, मिथ्या उपदेश, कूट लेख प्रादि इस व्रत के अतिचार माने गये हैं । (३) स्थूल प्रदत्तादान से विरति । चुराई हुई वस्तु का लेना, पायात-निर्यात के नियमों का उल्लंघन करना आदि इस व्रत के अतिचार हैं। (४) स्वदारसंतोषिक व्रत । अपरिगृहीता-गमन प्रादि इस व्रत के अतिचार हैं। (५) इच्छापरिमाण व्रत अर्थात परिग्रह-मर्यादा। मर्यादित परिमाण से अधिक क्षेत्र, वास्तु, धन-धान्य आदि का संग्रह करना इस व्रत का अतिचार माना गया है।
सात शिक्षाव्रत निम्नांकित हैं--(१) दिग्व्रत अर्थात् पूर्व, पश्चिम आदि दिशानों में आपने कार्य-क्षेत्र को सीमित करना। इस प्रकार मर्यादित सीमा के बाहर किसी
१. अप्रील ६, १९६३, की विद्वद्गोष्ठी में पढ़ा गया। २. जीवन-धारण के लिए अनिवार्य हिंसा प्रारम्भजा, एवं समाज, राष्ट्र आदि की
सुरक्षा के लिए अनिवार्य हिंसा विरोधजा कहलाती है।
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