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________________ DHARMA KE MULA: ANUBHUTI EVAM TARKA 201 पहले, आज से सौ साल पहले हमारे बंगाल और आसाम में पण्डित लोग संस्कृत तो शुद्ध लिखते थे और पीछे इन पण्डित लोगों ने जब अंग्रेजी सीखी, तो ये अंग्रेजी भी शुद्ध लिखते थे। लेकिन देशी भाषा लिखने में, प्राकृत लिखने में ये गलती कर देते थे और कुछ परवाह नहीं करते थे। मगर ईश्वरचन्द्र विद्यासागर ने वर्ण-परिचय लिखकर बांगला भाषा में संस्कृत नियम लाग कर दिया। तबसे देशज भाषा को-प्राकृत भाषा को भी व्याकरणसंगत बनाने का प्रयास चल रहा है और उसका नतीजा यह हुआ कि आजकल पण्डितों के समाज में जो हिन्दी चल रही है, वह गांव में किसी को समझ में नहीं आती । आज इस बात की चर्चा हुई कि धर्म की बुनियाद क्या है ? अनुभूति या तक ? आजकल हिन्दी भाषा में तर्क का माने कुछ हल्का हो गया है । हम अक्सर बहस करने वाले को तार्किक कह देते हैं यानी आजकल 'तार्किक' । शिकायत का शब्द हो गया है। किन्तु, संस्कृत में तर्क के लिए दूसरा शब्द है 'युक्ति'। यानी युक्तिवादी को ही तार्किक कहा जाता है । इस तरह संस्कृत में 'तर्क' शब्द का जो अर्थ था, उसके मुताबिक युक्ति से चिन्ता करके या युक्ति की बुनियाद पर निर्णय करने वाले को तार्किक कहा जाता था। मुजफ्फरपुर का जो यह वैशाली है, वह पुराने समय में तार्किकों का पीठस्थान था। इसलिए उसका असर अभी भी वैशाली पर है जो अच्छा है, बुरा नहीं। फलस्वरूप, स्वाधीन चिन्तन की शक्ति अभी भी वैशाली में प्रवहमान है । वैशाली की जो खूबी है, इसका जो गौरव है, वह केवल इसलिए नहीं कि यह महावीर तीर्थकर का जन्मस्थान है या भगवान बुद्ध ने यहाँ अपने धर्म का प्रचार किया था। निश्चय ही वैशाली के गौरव के कई कारणों में ये बातें भी शामिल हैं। लेकिन वैशाली के गौरव का सबसे बड़ा कारण यह है कि इसी जगह पर भारतवर्ष । मस्तिष्क की प्रथम मुक्ति हुई थी। मगध, कोसांबी, कोशल-सब जगह की चिन्ताधारा संकीर्ण थी, लेकिन वैशाली का जो चिन्ता-प्रवाह था, वह उन्मुक्त था, स्वतत्र था। और उसका विकास भारतवर्ष में ही नहीं, सारी दुनियाँ में हुआ। एशिया में मैं काफी घूम चुका है। मैं जब चीन गया तो वहाँ तुनह्वांग उत्तरी चीन में मैंने एक मूर्ति देखी। उसकी तसवीर मेरे पास रखी दुई है। वहाँ लिखा हुआ है अप्सराफ्लाइंग देव । जहाँ धर्मकीर्ति का मन्दिर है, मैं वहाँ भी गया। जापान जाकर मैंने वहाँ का सागरोत्सव ( सी सेरेमनी ) भी देखा। वहाँ लगभग सब कुछ बौद्ध धर्म से आया हुआ है। उनकी जो विनय है, बैठने-बैठाने का ढंग है, वह बौद्ध धर्म से आया हुआ है। उनका जो सौन्दर्य-बोध है, बाग-बगीचा वगैरह लगाने का सनीका है, वह भी बौद्धधर्म से हो आया हुआ है। इतना ही नहीं, मैं थाइलैंड गया, अंकोरवाट गया, कम्बोडिया और कंबोज गया । मैं एशिया में जहाँ भी गया, वहीं मैंने वैशाली में विकसित हुई चिन्ता-धारा का 'इम्पैक्ट', जिसे हिन्दी में प्रभाव कहते हैं, स्पष्ट देखा। चूंकि समूचे एशिया पर मैंने यह प्रभाव देखा, इसलिए मैं कहता हूँ कि वैशाली मेरे लिए श्रद्धा का स्थान है-जीर्थस्थान है । यह इसलिए भी तीर्थस्थान है कि यहीं पर पहली बार युक्तिवादियों ने, जैसा कि मैं पहले भी कह चुका हूँ, हमारे मस्तिष्क को-पूरे भारतवर्ष के मस्तिष्क को मुक्ति प्रदान की। ___ आपलोगों ने इस बात की भी चर्चा की कि धर्म क्या है ? धर्म की अनेक व्याख्याएं हैं। उसके तो बहुत मतलब हैं। सनातनपंथी जो कहते हैं, वह भी धर्म है। वर्णाश्रम को Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522601
Book TitleVaishali Institute Research Bulletin 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1971
Total Pages414
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationMagazine, India_Vaishali Institute Research Bulletin, & India
File Size9 MB
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