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શ્રીનીતિવિજયસૂરીશ્વરદશક
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श्रीनीतिविजयसूरीश्वरदशक ( अर्थात् योगचक्रस्तुतिः)
रचयिता:-मुनी भद्रानंदविजय जयजयश्री योगविशारदं चारित्र्यउज्वलधारक। विज्ञान भूषण भूषणं जयनीतिसूरिगुरुवरम् ॥१॥ जिसकी कृपासे मूढभी, विद्वान और वदान्य हो। जिसकी दयामय दृष्टिसे, पंगू भी लॉ गिरि अहो । जिसके सुखद शुभ दर्शसे, महाघोर अर्घ मिटते समी। उस नीतिसूरि यतीशको, पंचांग वंदन नित्य हो । जो चक्र मूलाधारमें होकर, चतुर्दलमय कमल । .. वंशं औषशं वर्णसे शोभित है सुन्दर सविमल ।। नवसूर्यसा शुभ रंग है स्वामी महागणराज है। वह और दूजा है नहों, मम इष्ट सरिराम है ॥३॥ स्वाधीन स्वाधिष्ठानमें, पदपाखुरीवालाधना। बंसेलगालं वर्ण तक जो, दिव्यतासे है सना॥ जगबंधु दिनकरसा अहे महावीर जहाँका अधिपती... वह सत्यमें है एकही नीतीविजयसूरी यती म दिक्पालदलवालाकमल डफ बीजसे शोमित महा। . . अति पूतनाभिक देश में जो नीलिमासे बस रहा ।। . जो आत्मरत योगीजनोंका प्राण प्यारा ध्येय है। " वहही गुरू नीतिविजय सूरीशवरका गेह है . ॥५॥ हद बीचमें कठ बीजमय द्वादशदली अमोज जी। है शुद्ध जांबू नदप्रभाधारी अनाहत चक्र जो॥ शंकर जहांपर शंस्वरूपी शांतिक सागर है। गुरुराज वह नीतिविजय नहीं और कोई अन्य है ।।.. शुभशारदी शशि कौमुदी सम वर्ण जिसका शुद्ध है। पत्र षोडशयुक्त स्वरमय मंजु पग विशुद्ध है ।। ईडासुसुमनापिंगला जहाँसे स्फुरण है ही रही। नीतिविजयसूरीशका वह धाम मंगल है सही जा
पवास है सनी॥