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________________ વિશ્વાસે ફલ દાયક. ૧૭ भैया, तुमसे कपट, नतो यह मुझसे हो सकता है और न मैंने किया ही है, बतलातो सही मैंने तेरे साथ कौनसा कपट किया है, विद्वान शिष्य बोला, महाराज आपने मुझे तो कोरा किताओं की ही कीडा बना दिया, और इस मूर्ख को मरे को जिंदा करने की महन्वमयी विद्या दी, क्या यह कपट काव्य बाहर नहीं ? गुरु के स्पष्ट पूछने पर सारा किस्सा सुना दिया, गुरु भी यह सुन आश्चर्य सागर में खोते खाने लगे, और उस मूर्खराज को निकट बुलाकर पूंछने लगे, उसने स्पष्ट और सत्य कहा कि महाराज आपने जो मंत्र बतलाया था उसी का यह प्रभाव है, गुरुराज और भी विशेष रुप से चकित हो कहने लगे मैंने तुझे कौन सा मंत्र दिया, भैया वह तो बतला । तब आप कहने लगे कि उसदिन जब की आप ठल्ले जा रहे थे उस समय आपने मुझे "भैस०-" यह मंत्र कही सिखाया था यह उसीका प्रताप हैं। यह सुन कर गुरुराज जोरों से हाकामार कर हंसने लगे और विद्वान शिष्य के प्रति कहने लगे, भैया तुमने मंत्र सुना, क्या यह भी कोई मंत्र है, परंतु इसके आत्मविश्वासने इसे महामंत्र बनादिया, देखो शास्त्र भी कहता है कि "विश्वासो फल दायकः" और भी कहा है कि "भावोहि विद्यते देवो तस्मात् भावो हि कारणम्" इसी कारण यह मंत्र सकल सिद्धि का प्रदाता बन गया, इसी कारण आप्त पुरुषोंने प्रथममें श्रद्धा को ही महत्व दिया है, इस तरह मंत्र को जानने पर उस विद्वान शिष्य को भी संतोष हुवा और गुरु को भी आत्मविश्वासी शिष्य के मिलने की परम प्रसन्नता । ॐ शांति 'भावना भवनाशिनी। गुरु भक्ति पर दोहरे. नीतिविजयसूरि प्रति, गुण गाउं चित लाय । अक्षर अक्षर के प्रति, बहु गुण रहे समाय ॥१॥ नीतिः-नीति वशे गुरु में सदा, अनीति थी अति दूर । त्रिकरण शुद्धि के लिये, दिव्य ज्ञान भरपूर ॥२॥ विः-विद्याका कुछ भी नहीं, मनमें गर्व लगार। पर उपगार में मग्न थे, दर्शन निर्मल धार ॥३॥ जा-जस कीर्ति गुरुराज की, सकल विश्व विख्यात । शांत मुद्राथी आपकी, दर्शन दो साक्षात ॥४॥ यः-यत्न था तीर्थोद्धार में, रैवतादि मन आण । अपूर्व दया थी आप में, शत्रु मित्र सम जाण ॥५॥ सूरिः-सूरि मंत्र को धारते, करते अजपा जाप। ब्रह्मचर्य के तेज से, हुआ अखंड प्रताप ॥६॥
SR No.522529
Book TitleJain Dharm Vikas Book 03 Ank 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmichand Premchand Shah
PublisherBhogilal Sankalchand Sheth
Publication Year1943
Total Pages28
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Dharm Vikas, & India
File Size7 MB
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