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જૈનધર્મ વિકાસ.
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प्रक बूढेने कहा कि भाई जो तूं उसको उठादें तो हम तुझे भारी इनाम देंगे, मूर्खराज मुर्दे के कान के पास जा बैठे और लगे अपने महा मंत्र 'भैसका सिंग लपोदका नाम' को सुनाने इस प्रकार आपको मंत्र सुनाते एक क्षण भी नहीं हुवा होगा कि मुर्दा हाथ पांव हिलाता हुआ उठ बैठा, यह देख सब हो आश्चर्य चकित हो गये, फिर क्या, “चमत्कार को नमस्कार” इस कहावत को चरितार्थ कर जो मूर्खराज को पागल समझताथा वही उन्हें महा सिद्ध पुरुष मानने लगा, जिधर देखो उधर ही से धन्य २ की ध्वनी निकलने लगी, चारों ओर से जनता पैरों पड़ने लगी, ढेरोंका ढेर सामान का लगने लगा, बिचारे मूर्खराज यह सब देखकर हक्काये से बन गये जब वे अपने निजीस्थान पर जाने लगे तो लोगोंका झुंड भी गहरी संख्या में सब सामान के हो लिया, सबी आपका जय २ कार कर रहेथे इस प्रकार बडे आनंद और उत्साह के साथ अपने स्थानके निकट आये भीड भाड के साथ, इन्हें दूर से आते हुवे देखकर विद्वान गुरुभाईने सोचा कि मूर्खने कोइ गांव में बड़ा भारी उपद्रव किया है जिससे इतने आदमी इसे घेर कर ला रहे हैं, होते होते जब वे पास आये तो इसने (मुर्खराजने) गुरुभाई को प्रणाम किया और पास में बैठ गया सारी भीड भी आगई सामानों का ढेर देख कर विद्वान मनमें कहने लगा कि मेरे आनेका वृत्तांत गांव वालोंको मालूम हुवा हैं जिससे वे मेरे सम्मानार्थ को साहित्य आये हुवे हैं विद्याभी कैसी वस्तु है जो अपरिचित स्थान में मुझे भी जा रही है किन्तु उस कोरे विद्याभिमानी को यह क्या ज्ञान कि यह सब मुर्खराज का प्रताप है अस्तु । जब सब लोग यथा स्थान बैठ गये तो विद्वान ने शिक्षा पूर्ण उपदेशको आरंभ किया किन्तु वहाँ सुनता ही कौन था, जो देखो वही मूर्खराज की सेवा करने में अपने आपको धन्य मानता था, यह देख विद्यानने जनता से कहा कि यह तो मूर्ख है, इसकी सेवा में कोई लाभ नहीं आप क्यों वृथा श्रम कर रहे है तब लोकोंने कहा महाराज आपतो हमें बुधु ही दिखाई पडते है, जो ऐसे सिद्ध महात्माको मूर्ख कह रहे हैं अभी २ इन्होंने एक मुर्दे को जिलादिया है, इन शब्दों को सुनते ही विद्वानका अभिमान चूर २ हो गया, शिर चकराने लगा, एवं गुरु महाराज के प्रति अविश्वास होने लगा, वह कहने लगा गुरुराजने यद्यपि मुझे पढाया पर गुप्त विद्या नही दी, मुझ से कपट किया जो मुझे यह भेद नहीं बताया, बस अब वापस लौट कर गुरुराज के पास जाना चाहिए और कह कर नम्रता से यह विद्या ले लेनी चाहिए ऐसा विचार कर शीघ्रतासे सामान बांध बंधाकर रातोरात चलने लगे और प्रातःकाल होते ही गुरु द्वारमें पहुंच गये, गुरुराजने इन्हे एकाएक आया देख आश्चर्य से पूछा कि क्यों, कल ही गये और आज ही वापिस आगये, और मुख कमल को भी मुर्छा आये, क्या प्रकृति खराब हो गई, तब विद्वानने कहा कि महाराज आपने हमारे साथ कपट क्रिया का व्यवहार किया है इसीसे मुझे दुःख हो रहा है, इन उपालब्धात्मक वाक्यो को सुनकर गुरु स्तंभित एवं चकित हो. बोले,