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________________ न faste सभी शास्त्र में सभी धर्म में, जीव घात कही बुरी। जीवोकी गर्दन पर निर्दय, हो क्यों चलाते छुरी ॥हिंसा॥९॥ जीव सभी जीना ही चाहतें, मरना नहि कोई चाहे। फिर क्यों प्राणो को हलाल कर, दूजे को कराहे ।।हिंसा॥१०॥ हिंसा मे यदि धर्म होय तो, पाप काय मे होवे। उल्टा पाठ पढाकर जगको, तू क्यों नर तन खोवे ।।हिंसा०॥११॥ हिंसा करने वाले पाते दुःखं, वहां भी भारी । परभव मे वे नरक भोगते, होती बहुत ही स्वारी ॥हिंसा॥१२॥ मरनेका भय सबसे भारी, इससम भय नहि दूजा। प्राण बचा कर सब जीवों के, करो प्रभु पद पूजा ॥हिंसा०॥१३॥ सोचो समझो मेरे भाई, हिंसा को अब त्यागो। भद्रानंदकी बात मान, इस महा पाप से भागो॥हिंसा०॥१४॥ दोहा. सब धर्मो का सार तो, दया धर्म ही जान । किसी जीव को मत सता, भद्रानंद पहिचान ।। . श्री श्रेयांस -स्तवनम. રચયિતા-મુનિશ્રીગુસીલવિજયજી. (१२ ४ि ॥ तमन्ना....... रागभा.) શ્રેયાંસ જિણુંદ શ્રેયકારા, કમને એ કાપનારા; स समुद्रथा तानाश, भुतिन में मापना।. श्रेयांस. (१) મૂર્તિ મેહન વદન શશિ, નયન લાગે નિવકારી; न्य त मा सहित, मुद्रा पासन भारी. श्रेयांस. (२) રાગ દ્વેષરને લવલેશ નાહીં, અવિરતી નો પક્ષ નાહીં, હાસ્ય રતિ અરતિ નાહીં, ભીંતિ શોક દુર્ગા નાહીં. શ્રેયાંસ. (૩) મિથ્યાઃ મેહ• નિદ્રા હણ્યાં, કામરકંદપ૩ ભાગી ગયાં; पाये १४ तराय१८ छुटर ५७यां, होष मार दूरे न्या. श्रेयांस. (४) દેવ દેવેન્દ્ર નિત્ય સેવે, ભવિક વૃંદ ગુણ ગાવે, નેમિ લાવણ્ય દક્ષ ધ્યાવે, સુશીલ શિવ સુખ પાવે. શ્રેયાંસ. (૫)
SR No.522525
Book TitleJain Dharm Vikas Book 03 Ank 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmichand Premchand Shah
PublisherBhogilal Sankalchand Sheth
Publication Year1943
Total Pages28
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Dharm Vikas, & India
File Size7 MB
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