SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 6
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ જનધર્મ વિકાસ ॥ श्री तपःकुलकम् ॥ ॥ कर्ता-आचार्यश्री विजयपद्मसूरिः ॥ ( गतis Y४ ३७६ था मनुसधान.) धणविहडणे ण वाउं-चिच्चा सत्तो परो तिहुयणम्मि ॥ तह णण्णो सुद्धतवं-विणा विणासे कुकम्माणं ॥१४॥ घरकप्पयरुसमाणो-तवो जिणिंदस्स सासणे जयए । सुहतोसमूलकलिओ-सीलसुहुम पण्णसंसोहो ॥१५॥ विविहाभयदाणमहा-पहाण पण्णोहभूसिओ णिच्च ॥ रुइजलसेयविवडिय-सत्तिकुलबलाइवित्थारो ॥१६॥ सग्गाइयसुहपुप्फो-मुत्तिफलो तेण भावकप्पयरू॥ णो देह मुत्तिसम्मं-सासइयं दव्वकप्पयरू ॥१७॥ समणेभयवं वीरे-तब्भवणिव्वाण णाण संजुत्तो॥ अपमाई चउनाणी-णियतत्तवियारणा निरओ॥१८॥ सडछमासदुवालस-वरिसप्पमिय छउमत्थयासमए ॥ छव्वीसदिण छमासि-कारस वासप्पमाण तवं ॥१९॥ संतेसुवसग्गेसु-महप्पयंडेसुतिव्वदुक्खेसुं॥ दीणत्तव्वहरेगा-कुणीअ समवित्तिमोएणं ॥२०॥ पणदिण णूण छमासी-पुण्णछमासी तिमासिया दुण्णि ॥ णव चउमासितवस्सा-सड्डदुमासी तहा दोणि ॥२१॥ दोमासियतव ॐक-नियमजुयं सढमासतवजुयलं ॥ मासियतवाइ बारस-बावत्तरि पक्खियताई ॥२२॥ एगणतीसदुसयं-छट्ठी बारहतहटमा विजला॥ दुदिणा भद्दा पडिमा-दिवसचउक्का महाभदौ ॥२३॥ अप्पज्झाण विसिट्ठा-पभावणा भिग्गहाइसंपण्णा ।। बहुकम्मक्खय दक्खा-दिणदसगा सबओभद्दा ॥२४॥ . सम्वेऽवि तवा विजला-विहिया वीरेण धीरमउडेणं ॥ नवचत्तालीसुत्तर-तिसयं पहु पारणदिणाणं ॥२५॥ एवं सिज्झइ महिमा-आवस्सअया तवस्सणिदोसा ॥ अप्पा सुवण्णतुल्लो-अग्गिसमाणो विसुद्धतवो ॥२६॥
SR No.522525
Book TitleJain Dharm Vikas Book 03 Ank 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmichand Premchand Shah
PublisherBhogilal Sankalchand Sheth
Publication Year1943
Total Pages28
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Dharm Vikas, & India
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy