SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 14
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नयम विस. છે. અત્યારે તેની પાસે સામાન્ય જગતની દષ્ટિએ કાંઈ પણ નથી; કેમકે તે નિષ્કચન છે. છતાં ઉદાર તે તેને તે જ-ગૃહસ્થાશ્રમના જેવો જ છે. તુચ્છ લક્ષમીથી જગતને ધનવાન બનાવવામાં હવે તેને સાર જણાતું નથી. તે સૌને આત્મધનથી સધન બનાવવા માગે છે. એ આત્મિક ધન મેળવવા તે હાલ સર્વ કાંઈ આગંતુક કે ઉદીતિ ઉપદ્રવ ક્ષમાથી સહન કરી રહ્યો છે. સહવામાં તેને નથી જરા યે દીનતા કે અધીરતા. એ સિંહવૃત્તિમાં સત્ય સ્વાર્થ ન સમજનારી દુનિયાને ખળભળાટ તેને લેશ પણ અસર કરી શકતો નથી. બાહા જગતથી વધારે દૂર રહેલી આત્મરમણતાના સ્વસ્થ સ્થાનમાં, તે મહાવીર બહુ જ સ્વસ્થતાથી નિર્ભય વિચરી રહ્યો છે, જ્યાં જગતને ખળભળાટ પહોંચી પણ શકે નહિ. __ (मपू.) शास्त्रसम्मत मानवधर्म और मूर्तिपूजा. लेखक:-पू. मु. श्रीप्रमोदविजयजी गणिवर्य. (पन्नालालजी) (This Y४ ३८३ थी मनुसंधान.) श्रीमान् रतीलाल भीखाभाईने दैनिक मुंबई समाचार के श्री लोकाशाह और जैन धर्म शीर्षक लेख में यह सिद्ध कर दिखलाया है कि यूरोप में भी प्राचीन काल से मूतिप्जा प्रचलित थी और है। इसीके प्रमाण में आमेत के एक बड़े पादरी रुई की मूर्ति पत्थर में खोदी हुई ३९०० वर्ष पूर्व की अभी ही मिली है जो कि ब्रिटीश म्यूजियम में सुरक्षित है। इससे चार हजार वर्ष पूर्व भी यूरोप में मूर्तिपूजा प्रचलित थी ऐसा प्रमाणित होता है ओलंपिया के पास "हीरा" नामक मंदिर जो कि ३००० वर्ष पुराना है उसकी प्राचीनतासूचक खंडहर अभी भी यत्र तत्र मिलते हैं। रंगूनमें पैगोड़ा का स्तूप अद्यावधि विद्यमान है जो कि बहुत प्राचीन है। एलिफेन्टा की गुफाओं में ३००० वर्ष पूर्व की खुदी हुई शिवपार्वती की मूर्तियां सम्प्रति भी विद्यमान हैं। मुंबई के शिवभक्त लोग शिवरात्रि महोत्सव भी वहीं पर जाकर मनाते हैं। अनन्ता और इलोरा में भी जैन, बौद्ध और वैदिक संस्कृति के प्राचीन मंदिर दिखलाई देते हैं। यह सब मूर्तिपूजा की प्राचीनता के साधक कम प्रमाण नहीं हैं । इजिप्त की संस्कृति का द्योतक एडुकु का २२०० वर्ष का मंदिर अभी तक भग्नावस्था में रह कर अपनी प्राचीनता का परिचय दे रहा है। इतना ही नहीं किंतु ब्रिटिश म्यूजियम में ५४०० वर्ष पूर्व को पबिडोस नामक इजिप्त राजा की मूर्ति हाथीदांत में कोरी हुई विद्यमान है यह प्राचीन मूर्तिपूजा के माहात्म्य को सूचित करती है। करीब ५००० वर्ष पूर्वका हि मोटेप नामक डाक्टर का बावला अभी भी ब्रिटिश म्यूजियम में विद्यमान है। इन प्रमाणों से इतना तो सिद्ध हो चुका है कि ६ हजार वर्ष पूर्व भी संसार में मूर्तिपूजा का महत्व था और उसका मानवसमाज में प्रचार भी काफी था। ऐसेही जैनधर्म में मूर्तिपूजा भी बहुत प्राचीन है यदि "मानवता के साथ इसका अनादिकालीन संबंध माना जाय तो किसी प्रकार की
SR No.522525
Book TitleJain Dharm Vikas Book 03 Ank 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmichand Premchand Shah
PublisherBhogilal Sankalchand Sheth
Publication Year1943
Total Pages28
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Dharm Vikas, & India
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy