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________________ સાધુકા તાડવ નૃત્ય. २६८ કીર્તિને ઉજવલ રાખી, આટલું છતાંય આપણે પ્રમાણિક કે અપ્રમાણિક દરેકને માટે કરી અધમ અને અગ્ય છે. એમ કહીએ એ શીરીતે વ્યાજબી છે? એક અપ્રમાણિક અને સત્તામદને શોખીન માણસ પ્રધાન હોય તેના કરતાં પ્રમાણિક અને ઉદાર માણસ તે પદ પર હોય તો રૈયતને અને તાબાના નોકરને કેટલો બધે સંતોષ આપી આશીર્વાદ મેળવી શકે? રાજાના અગ્ય ફરમાન સામે એ કયારેક જવાબ આપી શકશે, ત્યારે અપ્રમાણિક અને ખુશામતિ તે એમ જ ગણશે કે “આપણે શા માટે કેઈની વચ્ચે પડવું આપણે તે આપણું ભરે, શા માટે નકામું વેર કરવું?” છેવટ એટલું જ કહી શકાય કે નીતિજ્ઞ અને ધર્મિષ્ટ માણસ નોકરી કરે તે તે સ્તુત્ય છે. અને અપ્રમાણિક તે આપણે ના કહીએ તો પણ મનમાન્યું ४२पानी ! (अपूर्ण) साधुओं का तान्डव नृत्य ले. मुनि कुशलविजयजी-अहमदाबाद. इस पंचम कालमें और इस अवसर्पिणीकालमें जो मोक्षमार्ग के पहले नम्बर के आराधक हैं। जोकि साधू , श्रमण, भिक्षू , मुनि, योगी, यति आदि नामों से पहचाने जाते हैं, उनका बाह्यवेष संसारिक वेष से भिन्न होता है. एक प्रकार से द्रव्य आश्रव और भाव आश्रव से मुक्त रहते हैं द्रव्य संवर और भाव संवर से और क्रियाकी विशेषता से निर्जरा का लाभ भी हो जाता है. आचारांग सूत्रोक्त द्रव्य चारित्र और भाव चारित्र के रूप में, अर्थात् रत्नत्रयकी आत्मरूप विशुद्धता प्राप्त करने पर जो अमूल्य गाथा दृष्टिगत होती है उसके अनुकूल आज कल की चारित्र लीला, नृत्य लीला के समान हैं। साधु समाज दीक्षा के समय करेमिभन्ते की महाभिष्म प्रतिज्ञा को अक्षरशः भूल रहा है, क्योंकि जिन विषयों का त्याग किया है, वह त्याग पूर्ण कोटियों तक प्राकृति शब्द सूत्रोंको पढकर स्विकृति गुरू मुख से कि हुई त्याग भावना का जीवन के साथ २ निर्दोष रूप में संयम को शुद्ध बनाने के रूप में अनुष्टान चल रहा है. वह बिलकुल संदोष और अशुद्ध दृष्टिगत हो रहा हैं, ठाणांगसूत्र के अनुसार नाम निक्षेपादि जो शाब्दिक चौभंगी है उस के अनुसार नाम श्रमण विशुद्ध भावशून्य साधु संस्था हो रही है। यदि इसी तरह की परिपाटी चला करेगी तो सम्यकचारित्र की परिभाषा स्याद्वादवादी विद्वानों के द्वारा बनाने का सू अवसरे प्राप्त करना पड़ेगा। केवल नाम मात्र सम्यकचारित्र के अनुष्ठान से न तो स्वयम को शिव पद प्राप्त होता है। और न दूसरों को प्राप्त करा सक्ता है चर्म तिर्थंकर भगवान महावीरस्वामीने मुमुक्ष श्रमणनिकेता गौतमस्वामी को कहा था. अऐ गौतम तुझे केवल ज्ञान मेरे अस्तित्व में नहीं होगा इस बात का गौतम
SR No.522520
Book TitleJain Dharm Vikas Book 02 Ank 08 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmichand Premchand Shah
PublisherBhogilal Sankalchand Sheth
Publication Year1942
Total Pages52
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Dharm Vikas, & India
File Size10 MB
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