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શાસ્ત્ર સમ્મત માનવધર્મ ઓર મૂર્તિપૂજા
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गुल गुले से परहेज करने के समान ही है । मूर्ति की महत्ता और उससे होने वाले लाभ अल्पज्ञों के लिये तो प्रत्यक्ष ही है किंतु विद्वज्जनों के लिये भी स्फुट हैं । अल्यज्ञ जन तो इसके अवलंबन बिना कदापि धार्मिक दृढता के संस्कारों से संस्कारित नहीं हो सकते हैं किंतु मतिमान् व्यक्ति के हृदय में भी ऐसे संस्कार मूर्ति की महत्ता स्वीकार किये बिना कदापि उत्पन्न नहीं होते हैं । बालक से लेकर आनंद मस्त अध्यात्म योगी तक के लिये मूर्ति अनिवार्य साधन है । जिन २ धर्म नायकों और संस्थापकों ने मूर्ति का खंडन किया है उनके मतानुयायी वर्तमान में भी मूर्ति के उपासक ही बने हुए हैं और येन केन प्रकारेण मूर्तिपूजाको उत्तेजना देने वाले प्रयत्न भी करते हैं । वास्तव में मूर्तिपूजा सम्यक्त्व हेतु जितनी उपकारिका और लाभ प्रदा सिद्ध हुई है उतनी ही उपादेया और उपयोगी भी है । जैन, शैव, वैष्णब और बैदिक धर्मानुयायी तो मानव जाति के इतिहास की आदि से ही मूर्ति पूजक थे और हैं इनके संबंध में किसी को भी संदेह उत्पन्न नहीं हो सकता है किंतु इस्लाम या मुस्लिम धर्म, क्रिश्चियन (ईसाई) धर्म, आर्यसमाज, कबीर, नानक, और स्थानकवासी पंथ भी मूर्ति की व्यापकता का खंडन नही कर सकते हैं कारण वे भी मूर्तिपूजा को महत्व देते ही हैं । किसी भी वस्तु को महत्व तभी दिया जा सकता है जब कि उसके प्रति अनुराग भाव, श्रद्धाभाव और कर्तव्य धर्म भाव रहा हुआ हो । मुस्लिम धर्म के मतानुयायी अपनी मसजिदों में पीरों की आकृतियां बनाकर उनकी पुष्प, धूप, लोबान आदि से पूजा करते हैं विविध वर्णीय सुंदराकृति मय ताजियों का निर्माण कर उसके लिये अनेक दिन स पूर्व हर्षोत्सव मनाते हैं, उसको गांव में चारों ओर फेरते हैं उसके सामने रोते पीटते हैं, नारियल चढाते हैं, फूल और लोबान आदि की धूप से उसकी पूजा करते हैं यह सब मूर्ति पूजा का स्पष्ट विधान नही तो और क्या है ? इतना ही नही किंतु अजमेर में जो खाजापीर की एक प्रसिद्ध दरगाह है वहां अनेक सुदूरदेशवों मुसलमान अपना पुनीत तीर्थ धाम समझ कर दर्शनार्थ आते है। उस दरगाह में शृङ्गारित और स्वर्ण रजत (चांदी) जडित समीपस्थ स्थान विशेष के और स्वधर्मानुकूल आकृति विशेष के दर्शन कर अपने को कृतकृत्य समझते हैं । अपने पापों का नष्ट होना मानते हैं और अपने सद्भाग्य की सराहना करते हैं कि अहा ! आज मेरा परम पवित्र दिवस है कि जिससे में अपने तीर्थ स्थान के दर्शन कर अपने मानव जीवन को सफल कर सका हुँ । बंधुओ ! उत्तम उद्गार भक्ति भाव और आत्म कल्याण साधन भाव के होने पर ही निकल सकते हैं । इसके अतिरिक्त ये लोग अपने प्रसिद्ध तीर्थस्थान मक्का और मदीना भी हज (यात्रा) के निमित्त जाते हैं और वहां मूर्ति वत् स्थापित एक काले पत्थर को भक्तिपूर्वक चुम्बन कर अपनी धर्म-श्रद्धा और पूजा भावना प्रकट करते हैं । ये सब प्रवृत्तियां मूर्ती पूजा की ही साधिका हैं ।
__ (अपूर्ण.).