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નધમ વિકાસ
जो साम्प्रदायिक भेद-भावों से सदा ही मुक्त थे। बनकर विरोधी भी अगर सम्मुख यहाँ आता कहीं । गम्भीर मुद्रा देख कर ही शान्त हो जाता वहीं ॥७॥ परमार्थ को ही वे सदा, निज स्वार्थ-सा ही जानते । जिनराज की पूजा-प्रतिष्ठा, ध्येय अपना मानते ॥ निज भक्त-मण्डल के हृदय के भाव सब पहिचानते । होता सफल वह कार्य जो, अपने हृदय में ठानते ॥८॥ 'चितौड़' का श्रीसङ्घ लाया 'मूरि' को अपने यहाँ । गढ़ पर तभी लेकर चढ़े यति 'बालचन्द' उन्हें वहाँप्राचीन सत्तावीस. देवालय जहाँ पर थे खड़े । जो दुर्जनों के आक्रमण से खण्डहर बनकर पड़े ॥९॥ इस दुर्दशा को देख कर प्रण कर लिया उद्धार का। मेवाड़ होगा चिर-ऋणी जिनके महा उपकार का ॥ 'रोशन' उदयपुर का 'चतुर' श्रीमन्त श्रावक धन्य है। जिसके हृदय में 'मरि' के प्रति भक्ति-भाव अनन्य है ॥१०॥ इस सेठ ही ने तो प्रथम कुछ भेंट का निश्चय किया। सारे उदयपुर-सङ्घ ने भी, शक्ति का परिचय दिया। सन्देश पहुँचा 'मरि' का उस छोर तक इस छोर से। तब देव-द्रव्य-सहायता आने लगी सब ओर से ॥११॥ 'गुजरात' 'काठियावाड़' मरुधर प्रान्त के उत्साह में। . सिद्धायतन-प्रय बन गये इस पुण्य-शाली राह में ॥ श्री 'भग्गुभाई' 'चुनिभाइ' 'फौजमल' भी धन्य है। जिनने किया निज द्रव्य का शुभ त्याग श्रद्धाजन्य है ॥१२॥ .: श्री 'बोहरा' 'कोठारि' आदिक की 'कमेटी' बन गई।
निज निज 'चतुर-मति से 'मनोहर' कार्य में भी सन गई । होने लगी तैयारियाँ प्रतिमा-प्रतिष्ठा के लिये । सर्वत्र भारत में निमंत्रण-पत्र भी पहुँचा दिये ॥१३॥ आने लगे जब 'श्राद्ध'-मण्डल, भक्ति भावों से भरे। पर हाय ! काल कराल !! तूने यह दिखाया क्या अरे?