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________________ શ્રી આદીનાથ ચરિત્ર પદ્ય 3११ ॥श्री आदीनाथ चरित्र पद्य ॥ (जैनाचार्य जयसिंहसूरीजी तरफथी मळेलु) (४ १० ५४ २८२ थी अनुसंधान) बिजली सम योवन हो नासा, रोग आय पुनि डालत पासा । विषयवासनाफांसी भारी, अंध जीवको लगे सुखारी ॥ मोक्षमार्ग चिन्ता नहीं होइ, कायाकंचन अतिप्रिय होइ । नरतनु हे अतिदुर्लभ भाइ, अंध जीव तिन निरा बिताइ । पूर्वकर्म जब अतिशुभ होवे, तब जिनधर्म मिले सुख होवे । नर भवका में लूंगा लावा, दर्शनज्ञानचरित्र सुहावा ॥ महाबल कुंवर राज्य देडारूं, उत्तमचरित्र हृदयमें धारूं । इमि कह महावलको बुलवाये, राज्यनीतिके मार्ग बताये ।। जासु राज प्रिय मजा दुखारी, सो नृप अवश्य नर्क अधिकारी। असजिय जान सुनहु अय बेटा, सदा करहु निजरिपु सन भेटा॥ धर्म कर्म रखना अति नेमा, देवधर्म सन रखना प्रेमा। पितु आज्ञा निज शीस घर, लिया राज्यका भार । बड़े बचन नही टालिये, यह है नीतिपुकार ।। पुनि सिंहासन कुंवर बिठाये, मंगल शकुन नगर महि छाये । तिलकप्रथा नृप निज कर कीनी, बहुप्रकार पुनि आसीस दीनी॥ मस्तकतिलक सोहे अतिसुन्दर, चंद्र उदय उदयाचल भूधर । चंद्रोदय सागर शुभ गजेन, तिमि मंगल गावत बंदीजन ॥ राज्य भार इमि सोप कुमारा, नृप चारित्र लिया सुखकारा । जान असार विषयसुख छोड़ा, दर्शन ज्ञान चारित्र मन जोड़ा । विषय कषाय नष्ट कर दीना, जिमि हिंसक नर दयाविहीना। आत्मरूप मन वाणी अधिकारा, देह उपाय सहत सब भारा॥ राजर्षी सतबल हो जावा, मुक्तिमें आनन्द मनाया। ध्यानतपहिं में उम्र बिताई, देहत्याग देवगति पाइ॥ कुंवर महाबल राज्य को, सेवत अति सुख पाय । नारिन संग क्रीडा करे, इहि विधि उमर गमाय ॥ भपूर्ण
SR No.522511
Book TitleJain Dharm Vikas Book 01 Ank 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmichand Premchand Shah
PublisherBhogilal Sankalchand Sheth
Publication Year1941
Total Pages36
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Dharm Vikas, & India
File Size9 MB
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