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શ્રી આદિનાથ ચરિત્ર साधुसे वेराग्य विचारे, शुभचिंता निज मनमें धारे। यही भावना धर्म हे, श्रावक सुनहुं सुजान । इमि भावन मन भावता, होय आत्म कल्यान । साहु हृदय अनुराग, सुन मुनिवर बाणी बड़ा। बहुत सराहत भाग, मिला ज्ञान मन भावना।। करतविचारसाहू इहि माती, अब किमपाय जीव मम शांती ॥ बहुतठगा मुझ कर्म जंजाला, स्वामिकि या घट में उजियाला। पुनि सब मुनिवंदन धनकीना, पुनि निज आश्रमको चलदीना। भावना भावत रेन बिताई, प्रातः संख सम ध्वनि सुनाई। मंगल पाठक कहत पुकारि, आई शरद ऋतु अति सुख कारी ॥ फूलेकांस सकलमहि छाई, जनु वर्षा ऋतु प्रगट बुढ़ाई। उदित अगस्त पंथ जलसोखा, जिमि लोभ हि सोखे संतोखा ॥ तत्वज्ञान निर्मल मन होइ, जिमि सरवर जल निर्मल होई । सदउपदेश मिटही सब संका, तिमि जल सोखहिं सूर्यस संका॥ संघ सांड खुर खोदहि भूमि, चलन चहतचोसरकर भूमि । संग नगर निज किया पयाना, शकुन हुए अति सुन्दर नाना॥ पंथ चलतः मिलते शुभझरना, बिनहि प्रयास पथिक सुखकरणा। उचाटामन सब चेह पयाना, यह सब सुना साहु निज काना॥ मंगलपाठक वाणी सुन, धन मन किया विचार । पयान करनके समयको, जत लाया इस बार ॥ इमि मन ठान हुक्म फरमावा, पयाण मेरी तुरत बजावा। संघ नाह सुनकिया पयाना, घोर विपिन छूटहि सब जाना॥ सार्थवाह गुरुहिं पधारे, धर्मघोष आचार्य पियारे। कहा बिहार करन मुनिराइ, तब धन सबहि खबर पुचाइ ॥ सबहिआयमुनि दर्शनकीना, पुनि मुनि गमन पंथ निजकीना। इधर संघ पुनि किया पयाना, हुए शकुन सबहीं मन माना। आया संघ बसंत पुर माहीं, दरस परसकीना पुर माहीं। धन साहू अति किया व्योपारा, धनसंपति भरलीना मारा ॥ पुनिओय निज घर हर्षाइ, सम्यक्त्व पायकर उमर खुटाई । इमि पहला भव गाया भाई, गलती चतुर करो सुधराइ ॥ पहला भव समाप्त
अपूणे