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________________ શ્રી સિદ્ધચક્રસ્તોત્રમ २२८ मंगलमालापराभिधान ॥ श्री सिद्धचक्रस्तोत्रम् ॥ ( १४ १८७ थी अनुसंधान) ॥ श्रीसिद्धपदस्तवनम् ॥ राग-पुरिसाजइ० ॥ अपुणम्भवमुक्खसंतई। ववगयदेहविहावसंगई। विमले सिद्धे नमामि हैं। परमगुणे सययं पसंतिए ॥६॥ मागहिया ॥ ॥राग-अरइरइतिमिर०॥ विगयमरणुवगयपरमसुहगण नियरमणे । थिरसुहपरिणइ तइबल विअलियभवभमणे ॥ तिहुअणपसरियविमलजस पयर वर गइए । णममि सइ निरुवमपसुहणुहवए बिइयपयठिए ।। संगययं ॥७॥ ॥राग-तं च जिणुत्तम० ॥ सारयचंदसमुज्जलणिकलभावमए । झाण विसिट्ठकिवाणपणासिय मोहगए । केवलनाणपलोइय सव्यपयत्थनए । मुत्तिदए समरामि सया मुहसिद्धिगए । सोवाणयं ॥८॥ ॥राग-सावत्थिपुव्व०॥ देहाउकम्मजोणिजम्मरसवण्णगंधफरिसप्पखेयप्पणासगे। विमलभावरत्ते सुरवइमुक्खाइसाइयपहाण सुक्खपमोअमोइए पुण्णपुण्णए । नाणदिहिजोग रुद्धमणवयणतणु बहुगइ, जोगए कणयवण्ण झाणविसए णमामि सिद्धे । नयगमविआरिए निरुवमसमपत्तमुणिराय चित्तपरिसोहियपवर विगयजरे ।। वेड्डओ ॥९॥
SR No.522507
Book TitleJain Dharm Vikas Book 01 Ank 07 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmichand Premchand Shah
PublisherBhogilal Sankalchand Sheth
Publication Year1941
Total Pages52
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Dharm Vikas, & India
File Size9 MB
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