________________
બુધ્ધિપ્રભા
५२ ]
स्व और समाजको इससे क्या लाभ
जानते ही
और नुकशान है यह - सम्यक् प्रवृत्ति होती है । जिस कार्य करनेका निर्णय किया हो उसके अलावा भी कोई उत्तम कार्य है कि नहीं ऐसी सम्पूर्ण जानकारी करने के बाद, आत्मज्ञानी जो अपना कर्तव्य उमदा और शुभ खयालोंसे करता है . वैसे भावसे अज्ञानी और मूढ़ इन्सान अपना कर्तव्य कर नहीं पाता है।
ता. १०-१-१८६४
है
उगता
राग द्वेष के विचारोंसे कार्य होता उससे कर्मका बन्धन है । इसलिये रागद्वेष के संकल्प और बिकल्पको त्याग करके आनन्द और आइके बिना अनेक नजरोंसे अपना धर्म करना चाहिये, ऐसा दृढ़ संकल्प करके अपनी आयु और अधिकार के मुताबिक जो कार्य करता है वह दिखावेसे कार्य करते हुए मा निष्क्रिय रहकर महात्मा कर्मयोगी बन सकता है।
ગઝલ, દુહા, રાસ અને પ્રસિદ્ધ નૂતન રાગના સ્તવનાનું નવું પ્રકાશન:—
ભાવના [સ્તવન સંગ્રહ]
ङि : ४० नया पैसा [ पोस्टे ४ साथै ५० ]
: स्ययिता तथा प्राश! :
એંસીલાલ કાંતિલાલ શાહ ( ખંભાતવાળા) सांगावाडी, भा३ निवास, अर्टर नं. ७
N. B.
मोरीवली -पूर्व मुख्य प्राप्तिस्थान :सोमयह डी. शाह, पासीतागु.
મેઘરાજ જૈન પુસ્તક ભંડાર, સુબઇ ૨. सेवंतीसास वी, जैन, सुध्या ४. જશવ'તલાલ ગીરધરલાલ શાહ, અમદાવાદ. જૈન પુસ્તક ભંડાર, ગુરૂવાર પેઠ, પુના રે. મુકસેલર ગુલાબચંદ કાળચ, ખંભાત.