SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 41
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ता. १०-१०-१९६३] बुद्धिप्रभा [३९ अलकापुरी रोगी दवा नहीं, ओर दौड़ा। बालाने उसका पीछा विषकी प्याली है। किया। आगे एक जीर्ण-शीर्ण कुटिया थी। मनुष्य उसी में घुसा। बालाने -तुम अब किसी प्रकार आगे झाँककर देखा-वहाँ एक गन्दा, नहीं जा सकते पथिक लो, अंदर घिनौना बूढ़ा बैठा था और उससे चलो। स्वर्ण-सिंहासन तुम्हारी राह दर्गन्ध निकल रही थी। देख रहा है, वासियों पाटलके इत्रसे -क्या यही है पथिकका सुगन्धित चवर डिये तुम्हारी वाट माराध्यदेव । जोह रही हैं। -बाला निराश, हताश लौट मनुष्य यह सुनते ही लागेको पड़ी। SIONacase HOKaenacaIENCMNEMIERIES शा. मीठालाल रंगराज जैन स्वादिष्ट मिठाईयोंके निर्माता माहिम हलवावाला आपसे यह विश्वास दिलाते हैं कि आपको स्वादिष्ट और सुन्दर मिठाईयां खानेका पुग शौक हो तो आजसे हमारा नाम व पुरा पता याद रखें। नमकीन चीजों के लिए हम पुरेपुरें स्पेलीयालिस्ट हैं। आपका ओर्डर आने पर आपको माल खात्रीपूर्वक बनाकर दिया जायगा। * एकबार पधार कर हमें अनुगृहित करें * आपका -: पुकराज जवालीवाला जैन :- . सायन सोलंकी सदन, बिल्डींग नं. १७५ : दुकान नं. ७ बंबई २२. SESTRANSK#3:7:16SOUKERS -- दीपोत्सवी अंक - -
SR No.522148
Book TitleBuddhiprabha 1963 10 SrNo 48
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunvant Shah
PublisherGunvant Shah
Publication Year1963
Total Pages94
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Buddhiprabha, & India
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy