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________________ મીરાંબાઈક ઈતિહાસ २33 सहर आबाद किया राव जोधाके बेटा १७ थे जिजनमे छोटा ११ मां बेटा दूदाथा दूदा बडा उवा तब लामापीरके बरदानसे मेहतापर राजधानी बनाई और लामापीर राजपुत था लेकीन करामाती बातोसे मारवाडमे अव तक मशहुर है और हजारों लोग उसके लामापीरके नामसे पूजते हे. सं. १५४० मे लामा डूदा पर खुस ऊवा और मेरताका राज दीया अनतक मेडतिया राठोड भगमा (याने ) का शाय वनका तंबु रखते हे ओर रामाको बहोत मानते है. इदाके ५ पांच बेटे थे बड़ा वीरमदेव, डूजा रायमल, तीजा पंचायण, चोथा रायमल, पांचमा रत्नसिंह वीरमदेवका बडा बेटा जयमल था जिससे अकबर बादशाहने सं. १६१९ मे मेरता छीनलीया तनवह चित्तोड आया ओर महाराणा उदयसीहने १००० एक हजार गावो सहित बधनोरका पटा उनको दिया, सं. १६२४ मे अकबर बादशाहने चित्तोडका किला घेरा तव जयमल बड़ी बहादुरीके साथ लड़कर मारा गया जीसका जिक्र तवारीखोमें प्रसिद्ध हे. राव वीरमदेवके छोटा पांचमा भाई रतनसीह जो जयमलका चचा था उसकी बेटी भीरांवाई जीसको चित्तोडगढ के महाराणा संग्रामसिंह (सांगा)के बड़े पुत्र (युवराज) भोजराजको परणाई थी ओर भोजराज अपने पिता सांगाकी मोजूद गीमे ही परलोक सिधाया. मीराबाई विधवा रहगई ओर महाराणा सांगा सं. १५८४ मे वापर बादशाहसे बयानाकी लडाईमें लडकर जखमी हुवे ओर उस जखमसे उनका देहांत हुवा. माहागणा सांगाने ७ बेटा थे जीनमें माहाराणा सांगाके मरणेवाद तीन बाकी रहे. बडा रत्नसींह, दुसरा विक्रमादित्यं, तीसरा उदयसीह. रतनसीह जोधपुर का मान जा था उसने ४ चार वर्ष राज कीया जब तक मीराबाईको किसी तरहका हसन हुवा. सं. १५८८ मे रत्नसीहका देहांत होकर उनका छोटा भाई विक्रमादित्य चित्तोडकी गादीपर बेठा, विक्रमादित्यने मीराबाईको कई तरह की तकलीफ दी फिर सं. १५९२ मे विक्रमादित्य वणवीरके हातसे मारा गया ओर मीराबाई द्वारिका गई थी वहां उनका देहांत हो गया इसके सिवाय साधूसंत जो पद गाते हे ओर बहोतसी कथा मीराबाईके बारमें कथन करते हे वे करामतसे भरी कहावियोंके तोर पर हे. जिनके विषय में सच या झूठ हम कुछ नहीं कह सकते.................. This portion is a part of the letter written to my friend from whom this history is published. (Kaisseri. ) ___ आपने मीरावाईको इतिहास मंगाव्यो ते सुक्ष्म लीख भेजियो छे. अधिक लखवानी हमने फुरसद नथी परंतु मीराबाईनो सुक्ष्म इतिहास एट लोज छे. महा महोपाध्याय कविराजा सावलदास. मेम्बर कौन्सिल मेबाड उदयपुर,
SR No.522079
Book TitleBuddhiprabha 1915 11 SrNo 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1915
Total Pages34
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Buddhiprabha, & India
File Size817 KB
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