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________________ प्रकाशकीय साहित्य-प्रेमियों के लिए 'अपभ्रंश भारती' पत्रिका का 21वाँ अंक प्रस्तुत है। अपभ्रंश भाषा का अध्ययन और अनुशीलन सामान्य लोकचेतना के उदय और विकास के इतिहास का महत्वपूर्ण अंग है। अपभ्रंश के प्रकाशित-अप्रकाशित साहित्य से यह तथ्य स्पष्ट हो चुका है कि इस साहित्य को किसी भी रूप में 'सामान्य' व 'महत्वहीन' नहीं कहा जा सकता। अपभ्रंश साहित्य में एक ओर धार्मिक आदर्शों का व्याख्यान है तो दूसरी ओर लोकजीवन से उत्पन्न ऐहिक रस का राग-रंजित कथन भी। यह साहित्य अनेक शलाका पुरुषों के उदात्त जीवन-चरित से सम्पन्न है तो सामान्य वणिक-पुत्रों के दुःख-सुख की कहानी से परिपूर्ण भी है। दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्री महावीरजी द्वारा अपभ्रंश भाषा के अध्ययनअध्यापन एवं प्रचार-प्रसार हेतु जयपुर में वर्ष 1988 में 'जैनविद्या संस्थान' के अन्तर्गत 'अपभ्रंश साहित्य अकादमी' की स्थापना की गई। अकादमी द्वारा 'अपभ्रंश भाषा' के विधिवत् अध्ययन हेतु पत्राचार के माध्यम से दो पाठ्यक्रम संचालित हैं - 1. अपभ्रंश सर्टिफिकेट पाठ्यक्रम व 2. अपभ्रंश डिप्लोमा पाठ्यक्रम। ये दोनों पाठ्यक्रम राजस्थान विश्वविद्यालय से मान्यता प्राप्त हैं। इन पाठ्यक्रमों के अध्ययन-अध्यापन को सहज-साध्य बनाने के लिए अपभ्रंश व्याकरण एवं साहित्य सम्बन्धित पुस्तकें हिन्दी व अंग्रेजी में प्रकाशित हैं। अपभ्रंश भाषा के अध्ययन व लेखन के प्रोत्साहन हेतु अकादमी द्वारा 'स्वयंभू पुरस्कार' प्रदान किया जाता है। इसी क्रम में यह शोध-पत्रिका 'अपभ्रंश भारती' भी प्रकाशित की जाती है।
SR No.521864
Book TitleApbhramsa Bharti 2014 21
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2014
Total Pages126
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size7 MB
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