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अपभ्रंश भारती 19
अन्यत्व-भावना मेइणि सयल दढ दहति' सायरु सोसियउ सयलु पियंते। हड कलेवर संचएण मेरु महागिरि अंतरियउ। कलुणु रुवंते पियविरहिं अंसुएहि रयणायरु भरियउ।
___णविवि चलण मुणिसुव्वयहो॥7॥
अन्यत्व-भावना जइ लोहह मंजूसहि छज्जइ हय गय जोहहि जइ वि न रुज्झइ। हरिहरवंभ
पुरंदरहिं वरुण कुवेरह जइ गोविज्जइ। तो आसन्नइ मरणुभइ तिहुयणि। केण वि णउ रक्खिजइ।
णविवि चलण मुणिसुव्वयहो॥8॥
एकत्व-भावना एक्कु मरइ इक्कु वि उप्पज्जइ' रोय सोय वहु वाहिहिं खिज्जइ। इक्कु भमइ संसारि वणि मूढदिट्टि' कम्मवसइ गुप्पई। इक्कु जि तव तावं सहइ होइ जीउ णाणिं परमप्पइ।
णविवि चलण मुणिसुव्वयहो॥७॥
एकत्व-भावना भोयण खाण पाण पावरणइं गंधविलेवण कुसुमाहरणइं। आजम्मं वि परिपोसियउ तं ण सरीरु होइ जिय तेरउ। क हिवइ रुंभइ वंसु जणु किं ण होइ जिय दुक्ख जणेरउ।
णविवि चलण मुणिसुव्वयहो॥10॥