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________________ सम्पादकीय भाषा और साहित्य दोनों की समृद्धि के साथ इतिहास की एक बड़ी समय-सीमा को विभिन्न रूपों में प्रभावित करनेवाला अपभ्रंश साहित्य जीवन का साहित्य है, इसमें कोई किन्तु-परन्तु नहीं है। गुलेरीजी से लेकर रामसिंह तोमर या फिर शम्भूनाथ पाण्डेय तक ने अपभ्रंश की जिन साहित्यिक विशेषताओं को देखा है, वह कम नहीं है। हम देखते हैं कि स्वयंभू व पुष्पदंत अपभ्रंश के प्रमुख कवि हैं। उन्होंने अपभ्रंश को साहित्यिक गरिमा प्रदान की है। प्रसिद्ध आलोचक नामवरसिंह के शब्दों में "स्वयंभू व पुष्पदंत दोनों ही कवि अपभ्रंश - साहित्य के सिरमौर हैं। यदि स्वयंभू में भावों का सहज सौन्दर्य है तो पुष्पदंत में बंकिम भंगिमा है। स्वयंभू की भाषा में प्रच्छन्न प्रवाह है तो पुष्पदंत की भाषा में अर्थगौरव की अलंकृत झाँकी । एक सादगी का अवतार है तो दूसरा अलंकरण का उदाहरण है ।' डॉ. शैलेन्द्रकुमार त्रिपाठी के शब्दों में कहा जा सकता है " दरअसल साहित्य की दूसरी परंपरा का सूत्र या बीज अगर कहीं देखना हो तो संस्कृत से हटकर अपभ्रंश भाषा के इन कवियों की रचनाओं में देखा जाना चाहिये जिन्होंने साहित्य को सचमुच कूप से बाहर लाने की कोशिश की तथा व्यवहार के धरातल पर मौलिक उद्भावना की शक्ति का बीजारोपण सामान्यजन में किया । 'पउमचरिउ' 'रस- सृष्टि' और चरित्र - संचरण में 'विरुद्धों का सामञ्जस्य' लिये है । प्रवृत्ति - निवृत्ति, शृंगार-वैराग्य, श्रृंगार-युद्ध, काव्य-वस्तु अभिव्यंजना, संगीत एवं भाषित ध्वनियों का चमत्कार 'कव्वुप्पल' (काव्य-उत्पल) में क्या कुछ नहीं है जिसे कवि - लेखनी नेन सँवारा हो। फिर भी, काव्य में सरल मानस की ही अभिव्यक्ति हुई है। प्रसंग प्रेम का हो या युद्ध का, अभिव्यक्तिगत सहजता सर्वत्र विद्यमान है। यह एकदम नवीन प्राणस्पन्दी काव्य है। काव्यात्मकता की दृष्टि से स्तुतिपरक प्रसंग स्वयंभू की काव्यकला का श्रेष्ठ उदाहरण कहे जा सकते हैं। स्वयंभू की स्तुतियों में लयात्मकता का निर्वाह है। सभी स्तुतियाँ गेय हैं। इनकी स्तुतियों में अलंकारों का प्रचुर प्रयोग किया गया है। अनुप्रास, उपमा, रूपक, यमक, श्लेष का अधिक प्रयोग मिलता है। स्तुतियों में भिन्न-भिन्न छन्दों का प्रयोग किया गया है जो अपभ्रंश काव्य की एक प्रमुख विशेषता है। समास - बहुल शैली का प्रयोग भी कहीं-कहीं स्तुतियों में किया गया है। जहाँ यमक व श्लेष का साथ-साथ प्रयोग है वहाँ शैली क्लिष्ट है; अन्यथा सरल सहज शैली का प्रयोग स्तुतियों में किया गया है। विलासवई - कहा अपभ्रंश की प्रेमकाव्य-परम्परा के अनुरूप लिखी गई एक रचना है जो विषय-वस्तु, शैली एवं प्रबंध रचना की दृष्टि से प्रेमाख्यानक काव्य-परम्परा की एक कड़ी विशेष है। (vii)
SR No.521862
Book TitleApbhramsa Bharti 2007 19
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2007
Total Pages156
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size7 MB
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