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________________ 54 बालचन्दलेहा विअ दिटिं तोसेदि । सम्पदि णस्सदि विअ मे सरीरदाहो । मूडा विअ जादा । एकक्खणेण णस्सदि विअ मे सरीरदाहो । अप्पसण्णा विअ उस्सुआ दीसइ । अद्य किसङ्केदा विअ अम्हाअं सव्वसङ्कडा । चलदी विअ मे हिअअं । कुत्सा 7. थू - (कुत्सार्थक ) प्राकृत में अर्थ के लिए 'थ्रु' अव्यय का प्रयोग होता है। अविमारकम् में 'थू 'अव्यय का द्वित्वयुक्त प्रयोग उपलब्ध होता है । द्वित्व के कारण ही इसे ह्रस्व उकार हो गया है। निम्नलिखित प्रयोग द्रष्टव्य है - अपभ्रंश भारती 19 उच्छिट्टं करिस्सं । थु थु । अंक-4, पृ. 117 18 19 8. हद्धि - (निर्वेद सूचनार्थक) प्राकृत में निर्वेद अर्थात् खेद, शोक तथा वैराग्य को दर्शाने के लिए 'हद्धि' तथा 'हद्धी' " - इन दोनों ही अव्ययों का प्रयोग होता है। अविमारकम् में ‘हद्धि' अव्यय का प्रयोग निम्नलिखित स्थलों पर हुआ है. हद्धि दुवारणिरोहेण अव अदसन्दावं अत्ताणं करिस्सदि । - हद्धि तं एव संवुत्तं। 9.1 खु - किण्णु खु भविस्सदि । अंक- 5, पृ. 124 अंक-5, पृ. 129 अंक-5, पृ. 131 अंक-5, पृ. 131 अंक - 6, पृ. 143 अंक-6, पृ. 144 अंक - 6, पृ. 167 अंक-5, पृ. 133 अंक-5, पृ. 133 9. खु-हु-णं (निश्चयार्थक बोधक) महाराष्ट्री प्राकृत में निश्चय, वितर्क, सम्भावन और विस्मय इत्यादि को दर्शाने के लिए 'हु' तथा 'खु' अव्ययों का प्रयोग होता है। 20 अविमारकम् की प्राकृत में निम्नलिखित स्थलों पर इन अव्ययों का प्रयोग द्रष्टव्य है - सच्चो खु लोअप्पवादो । किंणु खु ईदिसो । खु भणिदं । धोखु सो जो। किं णु खु एत्थ कय्यं । के खुवाए । अंक-1, पृ. 11 अंक-2, पृ. 26 अंक-2, पृ. 36 अंक-2, पृ. 36 अंक-2, पृ. 37 अंक-2, पृ. 38. अंक - 2, पृ. 46 अंक-2, पृ. 49
SR No.521862
Book TitleApbhramsa Bharti 2007 19
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2007
Total Pages156
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size7 MB
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