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________________ 62 अपभ्रंश भारती 17-18 किं कारणु पहु अक्खहि कहिउ मुणिंद भओ । असुह कम्मु तुम्ह आयउ जं वउ णिंदियओ ॥33॥ मण-वय-काय तिसुद्धिए रविवउओ धरहु । पुव्व पाउ तुम्ह आयउ जं वउ णिंदियओ ॥34॥ मुणिहि वयणु आयरिओ पासणाहु थुणहि । एकचित्ति वउ कीयउ पुव्व जु छंडियओ ॥35॥ संपय तहो घर लीणी दाणु पूज करहि । एम कथा को वइयरू वाहुडि गय उ तहिं ॥36॥ सव्वह लहउ जु गुणहरूक्ख धाविया पियउ । जीवणु भावज पासहि हसें हसि मागियओ ॥ 37 ॥ रूसिवि ताइ सुवुत्तउ वइसिवि भोज कउ । घासु लइवि जइ आवहि भोयणु देउ तउ ॥38॥ भावज वयणुन सकिय गुसहि वि कुमारू तहि । दातु इवि तहि चलियउ वणु आरण्णु जहिं ॥39 ॥ विवरयाणि खडु वाधिउ छाडिवि दातु भूमि । घासु लेइ घरू आयउ कुमरू विसन्नमणु ॥40॥ भायर घरि निब्भंच्छिउ रे खलवुद्ध मणा । वेग दातु किं न आणहि तहि ठाम रहि कि ना ॥ 41 ॥ वासुगि कुमरू वषाणउ आयो तं षणहं । वेढि दातु च पासहं रहियउ असण मणा ॥ 42 ॥ जव भावज निरभंछिउ वालकु गयउ तहि । जीवदया प्रतिपालकु विसहरू ठियउ जहिं ॥ 43 ॥ अहो फणिंद मणिमंडण विनती करउ तुहि । वेगि दातु कइ अप्पहि अहवा डसहि मुहि ॥44 ॥ अम्ह दोसु जणु भावइ जिणकुलु संपावियओ । तुम्ह सरणु हउं आयउ अम्हहं हरहि भओ ॥45 ॥
SR No.521861
Book TitleApbhramsa Bharti 2005 17 18
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2005
Total Pages106
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size6 MB
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