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________________ 60 अपभ्रंश भारती 17-18 करहो । अहवा वारहमासहं एकुवरि भावें जिणवरू पुज्जिवि णियमणि कह धरहो ॥ 20 ॥ गिहि आइवि वउ णिदिउ भइय विसण्ण मणी । फलहं वउ आ खिउ किं कीरइ सवणी ॥ 21 ॥ सयल लछि तिनु नाठी रोय सहिय रहहि । उरू वि पूरि न सकहि कासु वि णउं कहहि ॥ 22 ॥ तं पुरू चइवि विएसहि करिवि उवाउ मणे । मायवापु घरि छंडिवि गइय ति अवधषनि ॥ 23 ॥ तहि जिणदत्तु वणीसरू गुणगण मयरहरो । धणपरियणहं संजुत्तउ भूवें कुसुमसरो ॥24 ॥ सइ वसुमइ पियमंडिउ अमियवयणु चवई । कामभोय सुह भुंजहि जिणवरू णित णवइ ॥ 25 ॥ यर मज्झि सो देषिवि दुक्खदरिद्ध जणु । कर जोडिवि सिरू नायवि विनय उ साहु सिहु ॥26॥ तुम्ह पसाय सामिय पेसणु अम्हि करहि । करि किरसणु ववहारू वनिज पेट्टर भरहि ॥27॥ तुहु जि साहु पुन्नाहिउ अम्हहि मणि धरहि । लाखदाम कौ षांडउ को सुवि अणुसरइ ॥28॥ जइ न रूषरउ सायण उ गरूवहं मणु हरई ॥ 29 ॥ महुर वयणु तुम्ह जंपिउ वयण सुहावण उं । वेगि मज्झु घरू आवहु कामु करहु घण उं ॥ 30 ॥ यणि दिवस ते धावहि सुक्खु न लहहि तहि । माय वापु घर ज्झरवहि भयउ वि जोउ जहि ॥ 31 ।। अवहणाणि तिन्हु पूछिउ धरिणिह धरिवि सिरू । पूतहं भयउ विछोहउ दुक्खदलिद्ध भरू ॥32॥
SR No.521861
Book TitleApbhramsa Bharti 2005 17 18
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2005
Total Pages106
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size6 MB
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