SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 48
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अपभ्रंश भारती 17-18 अक्टूबर 2005-2006 37 अपभ्रंश साहित्य में सूक्तियाँ - श्रीमती स्नेहलता जैन छठी शती ईसवी से चौदहवीं शती ईसवी तक अपभ्रंश भाषा में अनेक गौरवपूर्ण ग्रन्थ रचे गये जिसके कारण भारतीय संस्कृति के गौरव की अक्षुण्णनिधि अपभ्रंश साहित्य में सुरक्षित है। योगिन्दुदेव एवं महाकवि स्वयंभू के हाथों अपभ्रंश साहित्य का बीजारोपण हुआ। पुष्पदन्त, धनपाल, रामसिंह, देवसेन, हेमचन्द्र, सरह, कण्ह और वीर जैसी प्रतिभाओं ने इसे प्रतिष्ठित किया और अन्तिम दिनों में भी इस साहित्य को यश:कीर्ति और रइधू जैसे सर्वतोमुखी प्रतिभावाले महाकवियों का सम्बल प्राप्त हुआ। इन शक्तिशाली व्यक्तित्व के धनी कवियों का आश्रय पाकर यह साहित्य अल्पकाल में ही पूर्ण यौवन के उत्कर्ष पर पहुँच गया। अभिव्यक्ति की नयी शैलियों से समन्वित कर इन्होंने इसे इस योग्य बना दिया कि वह पूरे युग की मनोवृत्तियों को प्रतिबिम्बित करने में समर्थ हो सका। ___अपभ्रंश साहित्य का सर्वाधिक प्रचलित और लोकप्रिय काव्यरूप चरिउकाव्य है। अपभ्रंश में इस काव्यरूप में अनेक चरिउकाव्य मिलते है जैसे - पउमचरिउ, रिट्ठणेमिचरिउ, णायकुमारचरिउ, जसहरचरिउ, जम्बूसामिचरिउ, सुंदसणचरिउ, करकण्डचरिउ, पउमसिरिचरिउ, पासणाहचरिउ, सुकुमालचरिउ आदि-आदि। ये सभी चरिउकाव्य अपने काल के ज्ञानकोश तथा भारतीय इतिहास और संस्कृति के आकर ग्रन्थ हैं। वैसे देखा
SR No.521861
Book TitleApbhramsa Bharti 2005 17 18
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2005
Total Pages106
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy