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अपभ्रंश भारती 17-18
सकता है लेकिन विद्यापति के गीतों के प्रति लोगों की आस्था और श्रद्धा कमी कम न होगी।'' सच में, विद्यापति ज्ञानपीठ मिथिला के पुरातन कवीन्द्र रवीन्द्र हैं। लोकभाषा और लोक-आस्था के संरक्षक इस कालत्रयी कविकोकिल की पावन स्मृति को कोटिशः प्रणाम।
1.
कीर्तिलता, प्रथम पल्लव 1.10 (23-26), द्वि.सं. 1964, डॉ. शिवप्रसाद सिंह, हिन्दी प्रचारक पुस्तकालय, वाराणसी मिथिला का प्राचीन नाम तिरहुत + सं. तीरभुक्ति था। हिन्दी साहित्य कोश, भाग-2, प्रथम संस्करण, सम्वत् 2020, ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी-1, पृष्ठ-532
- 31/204, बेलवागंज
लहेरियासराय दरभंगा- 846 001