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अपभ्रंश भारती 17-18
यज्ञाग्नि में जलना पड़ा, यशोधरा को गौतम से वियुक्त होना पड़ा- पर ये नारियाँ इतने कष्ट सहने पर भी अपने कर्त्तव्य से कभी च्युत नहीं हुईं; आवश्यकता पड़ने पर जौहरव्रत भी करती रहीं और तलवार भी उठाती रहीं।
बहरहाल, अपने अस्तित्व के लिए निरन्तर संघर्षरत नारी-चरित्रों में द्रौपदी जैसे कुछ नारी-चरित्र हैं जो समस्त नारी जाति को सम्पत्ति नहीं, व्यक्ति के रूप में स्थापित करने के लिए यत्नशील दिखाई देते हैं अन्यथा तो अधिकांश नारी-चरित्र पुरुष-वर्चस्व को परोक्ष या अपरोक्ष रूप से स्वीकार करते ही दिखाई देते हैं।
इस भूमिका के आधार पर जब हम जनकनन्दिनी सीता के चरित्र पर. दृक्पात करते हैं तो पाते हैं कि सम्पूर्ण भारतीय वाङ्मय सीता के चरित्र से अत्यधिक प्रभावित है। वैदिक काल से लेकर अब तक भारतीय साहित्य में सीता के चरित्रांकन से अनेक पृष्ठ भरे हुए हैं। ब्रह्माण्ड, विष्णु, वायु, भागवत, कूर्म, अग्नि, नारद, ब्रह्म, गरुड़, पद्म, ब्रह्मवैवर्त आदि पुराणकाव्य; अध्यात्म-रामायण, अद्भुत रामायण, आनन्दरामायण आदि काव्य; भट्टिकाव्य (रावणवध), जानकीहरण, दशावतारचरित, उदारराघव, उत्तररामचरित आदि महाकाव्य; कुन्दमाला, अनर्घराघव, बालरामायण, महानाटक तथा हनुमन्नाटक, आश्चर्यचूड़ामणि, प्रसन्नराघव, उन्तत्त राघव आदि नाटक; महाभारत के रामोपाख्यान, द्रोण इत्यादि पर्व, दशरथजातक, अनामक जातक आदि बौद्ध साहित्य; पउमचरिउ (विमलसूरिकृत), पउमचरिउ (स्वयंभूकृत), उत्तरपुराण आदि जैन साहित्य; रामचरितमानस, रामचन्द्रिका, वैदेही वनवास, साकेत आदि हिन्दी साहित्य में ही नहीं अपितु ग्राम्यगीतों तक में भी सीता की समान रूप से प्रतिष्ठा हुई है।
__ध्यातव्य है कि रामकथाश्रित रचनाओं में सीता मानवीय मूल्यों से सम्पन्न आदर्श नारी के रूप में चित्रित की गई है। प्रायः सीता को असाधारण त्याग करनेवाली, पतिव्रता, सौम्य, शान्त, धर्मपरायणा, नैतिक मूल्यों से सम्पन्न, प्रेम-सहानुभूति और लज्जाशीलता से ओतप्रोत दिखाया गया है। असल में महर्षि वाल्मीकि ने सीता के चरित्र को जो रूप-आकार प्रदान किया, अन्य रामकथाओं में सीता का कमोवेश यही रूप प्रत्येक काल में दिखाई देता है। किन्तु आज के परिप्रेक्ष्य में नारी का वह परम्परागत रूप- जिसमें वह केवल सेवा और त्याग की मूर्ति, गुणों की खान, सौन्दर्यसम्पन्न, पति की आत्मा का अंश, पृथ्वी के समान धैर्यसम्पन्न, शान्तिसम्पन्न, सहिष्णु, दया, श्रद्धा आदि गुणों से अलंकृत रूप में वर्णित की जाती है- एक भव्य आडम्बर से ओतप्रोत लगता है। आज हमारे मानक बदल चुके हैं और नारी को हम पुरुष के समानान्तरबिना किसी आडम्बर के खड़ा देखना चाहते हैं अतः सीता का यह रूपांकन आज की नारी की दृष्टि से बहुत अनुकरणीय और आदर्श प्रतीत नहीं होता है। फिर, सीताचरित्र से