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________________ अपभ्रंश भारती 15-16 49 में कवि की दृष्टि यद्यपि धार्मिक एवं नैतिक उपदेश देने पर अधिक रहती थी, फिर भी चरित्रों के मनोवैज्ञानिक पक्षों के उद्घाटन की ओर भी वह कम सजग नहीं रहती थी। इस कारण ये रास काव्य चरित-काव्यों के अत्यधिक निकट आ गए। कुल मिलाकर विषय-सुख की नि:सारता सिद्धकर वैराग्य एवं मोक्ष की ओर मनुष्य के मन को उन्मुख करना इन रास काव्यों का लक्ष्य है। चरित्र ही जीवन है और संसाररूपी विषय-सिन्धु से पार करने के लिए धर्म ही सुदृढ़ जलयान है। धर्म आत्मा का स्वभाव है और इस स्वभाव को प्राप्त करना ही ज्ञान, ध्यान एवं तपश्चरण का सार है। रत्नत्रय को धारण कर आत्म-कल्याण की साधना की ओर अग्रसर करने की प्रेरणा प्रदान करना ही इन रासा ग्रन्थों का लक्ष्य है। . दर्प का वह स्वर जो हेमचन्द्र के व्याकरण में सुनाई पड़ा था, उसकी प्रतिध्वनि भी इन रासा ग्रन्थों में सुनाई पड़ती है परस आस किणि काण कीजइ, साहस सइंवर सिद्धि वरीजइ। हीउँ अनय हाथ हत्थीयार, एहजि वीर-तणउ परिवार ॥2 - दूसरों की आशा क्यों की जाय? साहस से स्वयं ही सिद्धि को वरण करना चाहिए। अनय (अन्याय) के विरुद्ध लड़नेवाला हृदय और हाथ में हथियार ही तो वीरों का परिवार होता है। आसक्तिपूर्ण मानव को वीरत्व एवं नैतिकता के खुले वातावरण में सांस लेने की प्रेरणा ये रासा-ग्रन्थ देते हैं। शृंगार की पंकिल भूमि से ऊपर उठकर शान्ति की मधुमति भूमिका में आत्मा को प्रतिष्ठित करना ही रासोकारों का उद्देश्य है। रासा और रासान्वयीकाव्य, सं.- डॉ. दशरथ ओझा और दशरथ शर्मा, प्रकाशकनागरी प्रचरिणी सभा, काशी, सं. 2016, पृष्ठ-2 हर्षचरित, बाणभट्ट, प्र.- निर्णय सागर प्रेस, मुम्बई, पंचम संस्करण, पृष्ठ-132 वही, पृष्ठ-130 हरिवंश, 20.25, 35
SR No.521860
Book TitleApbhramsa Bharti 2003 15 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2003
Total Pages112
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size7 MB
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