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________________ अपभ्रंश भारती 15-16 क वि रमणु ण जंतउ परिगणेइ, मुणिदसणु हियवएँ सइँ मुणेइ। क वि अक्खयधूव भरेवि थालु, अइरहसइँ चल्लिय लेवि बालु। 9.2.3-6 स्नेह में मिलन-आतुरी का प्रस्तुत बिम्ब बड़ा व्यंजक तथा भावपूरित है। इसी भाँति सातवीं सन्धि में करकण्ड के सिंहल-द्वीप में पहुंचने पर वहाँ के ऐश्वर्य का वर्णन पुनरुक्ति से द्विगुणित हो गया है (7.5.5-7)। रतिवेगा के विलाप में प्रयुक्त पद-योजना उसके अन्तस् की करुण-दशा एवं रोदनध्वनि को साकार कर देते हैं हा वइरिय वइवस पावमलीमस किं कियउ। मइँ आसि वरायउ रमणु परायउ किं हियउ। हा दइव परम्मुहु दुण्णय दुम्मुहु तुहुँ हुयउ। हा सामि सलक्खण सुट्ठ वियक्खण कहिँ गयउ। महो उवरि भडारा णरवरसारा करुण करि। दुहजलहिँ पडंती पलयहो जंती णाह धरि। 7.11.9-14 यहाँ 'हा', 'वइरिय', 'दुम्मुह', 'सामि', 'वियक्खण', 'णरवरसारा' आदि शब्दों में उसके हृदय की वेदना की अभूतपूर्व अभिव्यक्ति हुई है। फिर एक विवाहिता एवं पतिव्रता नारी के लिए उसके पति के अतिरिक्त है ही कौन? तभी तो वह कहती है महो उवरि भडारा णरवरसारा करुण करि। और वह भी अपने हाथ से पकड़कर बचाने के लिए निवेदन करती है। यहाँ विरहिणी रतिवेगा के खीझ, आक्रोश, दीनता, समर्पण और निवेदन न जाने कितने भावों को कवि ने समाहित कर भाषा की व्यंजना में चार चाँद लगा दिये हैं। यह लोक-जीवन की अनुभूति बिना सम्भव ही नहीं। इससे मुनि कनकामर की लोक-जीवन में गहन पैठ स्पष्ट होती है। धाड़ीवाहन और करकण्ड के युद्ध के बीच आकर पद्मावती पिता-पुत्र को एक-दूसरे का परिचय कराकर रोकती हुई, पति के पास खड़ी होती है (3.20), चम्पा-नरेश उसे देखते हैं- यह मोहक बिम्ब भला किसके हृदय को तरलकर भावों से नहीं भरेगा! यहाँ नयनों के मौन संवाद में हिये के अनगिन भावों की ही अभिव्यक्ति नहीं हुई है, अनगिन उपालम्भ और गिलवे-शिकवे ही नहीं कह दिये गये हैं, बल्कि इतने लम्बे विछोह की अकथ व्यथा भी व्यंजित हो गई है और अन्त में पति-पत्नी के रिश्ते की पवित्रता, गम्भीरता एवं निष्कलंकता का मर्म भी भली प्रकार स्पष्ट हो गया है, यह कवि की भाषा-शैली का ही लालित्य है सा दिट्ठिय चंपणरेसरेण, गंगाणइ णं रयणायरेण। 3.20
SR No.521860
Book TitleApbhramsa Bharti 2003 15 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2003
Total Pages112
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size7 MB
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