SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 37
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 26 अपभ्रंश भारती 15-16 है। फलतः वह क्लिष्ट हो गई है। यह शिक्षित-वर्ग की भाषा का रूप है। दूसरी ने इस परम्परा का परित्याग कर स्वतन्त्र रूप को अपनाया है, जिसमें छोटे-छोटे प्रभावोत्पादक वाक्य, शब्दों की आवृत्ति एवं उनके लोक-प्रचलित स्वरूप, वाग्धाराओं तथा लोकोक्तियों और मुहावरों का प्रयोग किया गया है। यह भाषा सरल, चलती हुई एवं अधिक प्रवाहमयी है तथा लोक-जीवन की छाप को लिये हुए है। मुनि कनकामर ने अपने 'करकण्डचरिउ'' में इसी लोक-भाषा अपभ्रंश का प्रयोग किया है। फिर, इन कथा-काव्यों और चरिउ-काव्यों के रचयिता मुनि एवं आचार्य पद-यात्री होने से लोक-जीवन तथा संस्कृति से सीधे जुड़े रहते थे। अपने धर्म का प्रचार करना इनका प्रथम कर्तव्य था। इसी से इन्होंने लोक-भाषा अपभ्रंश को ही अपनाया, जिससे ये जनता के सम्पर्क में भी बने रहे और अपने ध्येय की पूर्ति भी कर सके। प्रस्तुत कृति में कवि द्वारा प्रयुक्त भाषा में देशी शब्दावली का समुचित विन्यास उपलब्ध होता है जिनका उच्चारण लोक के लिए सरल होता था, यथा- कुंजर, मणि, किंकरु, देव, मुणिवरु, वहिणि, भामिणि, सुअ, मंगलु, कुडु, किंकिण, कामिणी, वंदीजण आदि। अनेक शब्द हिन्दी में पर्याप्त समता रखते हैं- । हुयउ (1.4.10) डाल (1.6.5) रुक्खहो (1.14.3) आगइ (1.14.4) पुक्कार (2.1.9) वत्त (2.1.13) गुड सक्कर लड्डू (2.7.1) भग्गा (3.15.10) अहीर (8.6.5) थालु (9.2.6) कप्पड (10.20.6) 'ण' का प्रयोग मिलता है, यथा- णयन, वयण, तणउ, णिकिट्ट आदि। संयुक्त व्यंजनों में 'द्वित्व' का प्रयोग मिलता है, यथा- रत्त, मुत्ता, पुत्त, सव्व, दिव्व, धम्म, आसत्त, मेत्ति, कप्प आदि। 'ह' का प्रयोग भी मिलता है, यथा- मेह, मुह, णाह, जलहर, पयोहर, दीह, वल्लह, क्रोह आदि। 'व' का प्रयोग मिलता है, यथा- कवोल, विवरीउ, दीव आदि। 'य' का प्रयोग मिलता है, यथा- सयल, पयण्ड, खेयर, मायंग, सायर, भुयंग, गयण, धरणीयल आदि। 'स' का प्रयोग मिलता है, यथा- सेय, हरिसु, जोईसरु आदि। काव्य में प्रयुक्त लोक-प्रचलित अनेक शब्दों के उदाहरण इस प्रकार हैं, यथाताउ, अमिय, सुउ, पइट्ठ, विज्जु, खणु, पडु, रज्जु, संगरु, विज्जा, सोक्ख आदि।
SR No.521860
Book TitleApbhramsa Bharti 2003 15 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2003
Total Pages112
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy