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________________ 86 अपभ्रंश भारती 13-14 णावइ मङ्गल-कलणु वसन्तें॥ फग्गुण-खलहों दूर णीसारिउ। जेण विरहि-जणु कह व ण मारिउ ॥4.1.1-3 ।। - अर्थात् लाल सूर्य-पिण्ड ऐसा लग रहा था मानो प्रवेश करते वसन्त ने संसार में कोमल किरणों के दल से ढके हुए प्रभातरूपी मंगल कलश (दधिलेपित) की स्थापना की हो। वसन्त ने फाल्गुन के दुष्ट दूत पाले को भगा दिया। पङ्कय-वयणउ कुवलय-णयणउ केयइ-केसर-सिर-सेहरु। पल्लव करयलु कुसुम-णहुज्जलु पइसरइ वसन्त-णरेसरु॥14.1.9-10॥ - धीरे-धीरे वसन्त राजा का प्रवेश हुआ। कमल उसका मुख था, कुमुद-नेत्र, केतकी, पराग, सिरशेखर-सिरमुकुट, पल्लव-करतल और फूल उसके उज्ज्वल नख थे। फागु काव्य में वसन्त/कामदेव का आना बहुत ही सहज ढंग से होता है, और जनश्रुतियों पर अगर ध्यान दिया जाय तो फागुन/दोलोत्सव/वसन्तोत्सव/मदनोत्सव/होलिकोत्सव से जन-साधारण का लगाव देखा जा सकता है; और सम्भवतः यही कारण है कि फागु काव्य में कहीं-कहीं 'अति' की झलक भी दिखायी देने लगती है - कठिन सुपीन पयोधर, मनोहर अति उतंग। चंपनवनी चन्द्राननी माननी सोह सुरंग॥ हरणी हरावी निज नयणहि वयण्डि साह सुरंग। दंत सुपंती दीपंती सोहंती सिरवेणी बंध॥ - वीर विलास फागु कहीं-कहीं पर फागु काव्यों में (जैनेतर) परम्परा का प्राचीनतम रूप देखने को भी मिल सकता है। उदाहरण के लिए 'वसन्त विलास' के रचयिता के बारे में विवाद है। कृति के जैन परम्परा में होने में भी विवाद है (कुछ मानते हैं, कुछ नहीं मानते) पर इससे कृति के स्थायी महत्त्व में किसी भी प्रकार की कमी होगी ऐसी नहीं कहा जा सकता - देसु कपूर ची वासि रे वासि वली सर पडउ। सोवन चांच निरूपम रूपम पांषुड़ी बेउ॥ - 'हे वायस, तुम्हें मैं वायसिका कपूर से वासित कर दूंगी। यदि तू प्रिय के आगमन का स्वर सुना देगा तो सोने से चोंच मढ़ा दूंगी। तेरी दोनों पाँखें चाँदी से मढ़ा दूंगी।' कहना न होगा कि यह विद्यापति से होता हुआ आज भी लोकभाषाओं की परम्परा में अपभ्रंश की समृद्ध परम्परा से ही सुरक्षित है। कभी-कभी अत्यन्त सुन्दर उपमा के जरिये फागु काव्यों में चित्रात्मक अभिव्यक्ति मिलती है कि लगता नहीं कि यह धार्मिक काव्य है -
SR No.521859
Book TitleApbhramsa Bharti 2001 13 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2001
Total Pages114
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size8 MB
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