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प्रकाशकीय
अपभ्रंश भाषा और साहित्य के अध्ययनकर्ताओं के सम्मुख ‘अपभ्रंश भारती' का यह संयुक्त अंक (तेरहवाँ-चौदहवाँ अंक) प्रस्तुत करते हुए हर्ष है।
___ अपभ्रंश का अर्थ है- लोकभाषा/जनबोली। सामान्य लोगों की बोलचाल की भाषा ही लोकभाषा/जनबोली होती है। लोकभाषा/जनबोली सांस्कृतिक मूल्यों की वाहक होती है। लोकभाषा/जनबोली बदलती चलती है। ईसा की पाँचवी-छठी शताब्दी में लोकभाषा/जनबोली 'अपभ्रंश' साहित्यिक अभिव्यक्ति के लिए एक सशक्त माध्यम बन गई।
. भारतीय संस्कृति को समग्ररूप से जानने के लिए लोकभाषाओं के साहित्य का अध्ययन एक अनिवार्यता है। जन-जीवन में व्याप्त सांस्कृतिक मूल्यों को आत्मसात करने की ओर झुकाव लोकभाषाओं के साहित्य के प्रति रुचि जागृत करने से ही होती है।
इस तथ्य से प्रेरित दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्रीमहावीरजी द्वारा सन् 1988 में अपभ्रंश साहित्य अकादमी' की स्थापना की गई। अपभ्रंश भाषा के प्रति रुचि जागृत करने के लिए, उसके अध्ययन-अध्यापन के लक्ष्य को सम्यक् दिशा प्रदान करने के लिए अकादमी से 'अपभ्रंश रचना सौरभ', 'अपभ्रंश अभ्यास सौरभ', 'अपभ्रंश काव्य सौरभ', 'प्रौढ़ अपभ्रंश रचना सौरभ', 'प्राकृत रचना सौरभ', 'प्राकृत अभ्यास सौरभ', 'प्रौढ़ प्राकृत रचना सौरभ', 'प्रौढ़ प्राकृत-अपभ्रंश रचना सौरभ भाग-2', 'प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ', 'अपभ्रंश : एक परिचय' आदि पुस्तकों का प्रकाशन किया जा चुका है। पत्राचार के माध्यम से अखिल भारतीय स्तर पर 'अपभ्रंश सर्टिफिकेट पाठ्यक्रम व अपभ्रंश डिप्लोमा पाठ्यक्रम संचालित हैं। अपभ्रंश भाषा में मौलिक लेखन को प्रोत्साहन देने के लिए 'स्वयंभू पुरस्कार' भी प्रदान किया जाता है।
जिन विद्वान् लेखकों के लेखों से इस अंक का कलेवर बना है उनके हम आभारी हैं। . पत्रिका के सम्पादक, सहयोगी सम्पादक एवं सम्पादक मण्डल धन्यवादाह हैं। अंक के पृष्ठ-संयोजन के लिए आयुष ग्राफिक्स, जयपुर एवं मुद्रण के लिए जयपुर प्रिण्टर्स प्राइवेट लिमिटेड, जयपुर भी धन्यवादाह है।
नरेशकुमार सेठी
नरेन्द्र पाटनी मानद मंत्री
अध्यक्ष
प्रबन्धकारिणी कमेटी, दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्री महावीरजी
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