________________
अपभ्रंश भारती 13-14
23 16. एत्थु वच्छ अवहेरि करेवी। जणय-तणय वणे कहि मि थवेवी।
जीवउ मरउ काइँ किर तत्तिए। किं दिणमाणि सहुँ णिवसइ रत्तिए । मं रघु-कुलें कलंकु उप्पज्जउ। तिहुअणे अयस-पडहु मं वज्जउ॥ 81.8.2-4॥ वही
17.
महु ण दोसु रहुवइ जे जाणई। वरि विसु हालाहउ भक्खियउ वरि ज़म लोउ णिहालियउ। पर-पेसण-भायणु-दुह-णिलउ सेवा-धम्मु ण पालियउ।। 81.10.9-10॥ वही
18.
दूहव-दूरास-दुह-भायणिय णइ मइँ जेही का वि तिय ॥ 81.12.10 ।। वही
19.
णिट्ठर-हिययहों अ-लइय-णामहों। जाणमि तत्ति ण किज्जइ रामहों। घल्लिय जेण रूवंति वणन्तरें। डाइणि-रक्खस-भूय-भयंकरें। 83.6.2-3 जो तेण डाहु उप्पाइयउ पिसुणालाव-मरीसिऍण । सो दुक्करु उल्हाविज्जइ मेह-सएण वि वरिसिऍण ।। 83.6.8 ।। वही
जइ वि ण कारणु राहव-चंदें। तो वि जामि लइ तुम्हहँ छंदे ।। 83.7 ।। वही
कन्तहें तणिय कंति पेक्खेप्पिणु। पभणइ पोमणाहु विहसेप्पिणु। 'जइ वि कुलुणयाउ णिरवज्जउ । महिलउ होंति सुठ्ठ णिल्लज्जउ॥ दर-दाविय-कुडक्ख-विक्खेवउ। कुडिल-मइउ वड्ढिय-अवलेवउ । वाहिर-धिट्ठउ गुण-परिहीणउ। किह सय-खण्डण जंति णिहीणउ॥ णउ गणन्ति णिय-कुलु मइलंतउ। तिहुअणे अवस-पडहु वज्जन्तउ॥ अंगु समोड्डेंवि धिद्धिक्कारहों। वयणु णिएंति केम भत्तारहों' ।। 83.8.1-6 ।। वही
21.
पुरिस णिहीण होंति गुणवंत वि। तियहें ण पत्तिज्जन्ति मरंत वि॥ खडु लक्कडु सलिलु वहतियहें पउराणियहें कुलुग्गयहें। रयणायरु खारइँ देन्तउ तो वि ण थक्कइ णम्मयहें।। 83.8.8-9॥ वही