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________________ अपभ्रंश भारती 13-14 जबहिं राम सब कहा बखानी। प्रभु पद धरि हियँ अनल समानी ।। निज प्रतिबिम्ब राखि तहँ सीता । तैसइ सील रूप सुबिनीता ।। लछिमनहूँ यह मरमु न जाना । जो कछु चरित रचा भगवाना ।।23 ।। __ - अरण्यकाण्ड, रा.च.मा. 5. माणवि एह तिय जं जिज्जइ एक मुहुत्तउ। सिव-सासय-सुसहों तहों पासिउ एउ वहुत्तउ ।। 38.8.9 प.च.॥ नवधा भगति कहउँ तोहि पाहीं। सावधान सुनु धरु मन माहीं॥ प्रथम भगति संतन्ह कर संगा। दूसरि रति मम कथा प्रसंगा ।। गुर पद पंकज सेवा तीसरि भगति अमान । चौथि भगति मम गुन गन करइ कपट तजि गान ।। 35 ।। मंत्र जाप मम दृढ़ बिस्वासा । पंचम भजन सो बेद प्रकासा ।। छठ दम सील बिरति बहु करमा। निरत निरंतर सज्जन धरमा ।। सातवें सम मोहि मय जग देखा। मोतें संत अधिक करि लेखा। आठवें जथालाभ संतोषा। सपनेहुं नहिं देखइ पर-दोषा॥ नवम सरल सब सन छलहीना। मम भरोस हियँ हरष न दीना ।। 36।। - अरण्य., रा.च.मा. 7. एम भणेवि पेसिउ सामन्तउ। जो सो परिमियत्थ- गुणवन्तउ॥ 70.5.7 प.च.॥ तं णिसुणेवि भडेहिँ गलथल्लिउ। टक्कर-पण्हिय-धाएहि घल्लिउ॥ गउ स-पराहवु लंक पराइउ। कहिउ देव हउँ कह वि ण घाइउ ।। दुज्जय लक्खण-राम ण करन्ति संधि णउ वुत्तउ। जै जाणहि तं चिन्तें आयउ खय-कालु णिरुत्तउ ।। 70.8-10 ।। वही
SR No.521859
Book TitleApbhramsa Bharti 2001 13 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2001
Total Pages114
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size8 MB
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