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________________ अपभ्रंश भारती 13-14 साहित्य की सर्जना करते थे। इस प्रकार जैन, बौद्ध, हिन्दुओं के अतिरिक्त मुसलमानों ने भी अपभ्रंश में रचना की। समग्रतः धार्मिक और पौराणिक होते हुए भी अपभ्रंश साहित्य अपनी युगचेतना से एकदम अछूता नहीं है। इनके कथानायकों में अपने युग के शासकों के स्वभाव, रुचि, रीतिनीति, विद्यानुराग और धार्मिक मनोवृत्ति लक्षित की जा सकती है। 1. राइस डेविड्स, बुद्धिस्ट इण्डिया, पृष्ठ 96 अम्बादत्त पन्त, अपभ्रंश काव्यपरम्परा और विद्यापति, पृष्ठ 133 वरदाचारी, हिस्ट्री ऑफ़ इण्डिया, भाग एक जयचन्द्र विद्यालंकार, इतिहासप्रवेश, पृष्ठ 178 हरिवंश कोछड़, अपभ्रंश साहित्य, पृष्ठ 27 वासुदेवशरण अग्रवाल, हर्षचरित एक सांस्कृतिक अध्ययन, पृष्ठ 105 राहुल, पुरातत्त्व निबन्धावली, पृष्ठ 139 अम्बादत्त पन्त, अपभ्रंश काव्यपरम्परा और विद्यापति, पृष्ठ 138 जुगमन्दिरलाल जैनी, आउटलाइन्स ऑफ जैनिज़्म, पृष्ठ 7-26 डॉ. हजारीप्रसाद द्विवेदी, हिन्दी साहित्य की भूमिका, पृष्ठ 257 हरिवंश कोछड़, अपभ्रंश साहित्य, पृष्ठ 29 गौरीशंकर हीराचन्द ओझा, मध्यकालीन भारतीय संस्कृति, पृष्ठ 27 देवेन्द्रकुमार जैन, अपभ्रंश भाषा और साहित्य, पृष्ठ 51 सी.वी. वैद्य, हिस्ट्री ऑफ़ मिडीवल हिन्दू इण्डिया, भाग 2, पृष्ठ 18 आदित्य प्रचण्डिया, अपभ्रंश भाषा का पारिभाषिक कोश, पृष्ठ 42-43 अलका प्रचण्डिया, अपभ्रंश काव्य की लोकोक्तियों और मुहावरों का हिन्दी पर प्रभाव, पृष्ठ 15-16 10. 11. 12. 13. 14. 15. 16. मंगल कलश - 394, सर्वोदयनगर, आगरा रोड अलीगढ़ - 202 001 (उत्तरप्रदेश)
SR No.521859
Book TitleApbhramsa Bharti 2001 13 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2001
Total Pages114
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size8 MB
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