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________________ 100 10. अपभ्रंश भारती 13-14 अयोध्या इक्वाक्षुवंश के राजाओं की राजधानी रही है, वह आगे चलकर राम की पुरी बन गई, जो भगवान् राम के सम्बन्ध का स्मरण कराती है। रामभक्ति के साथ सरयू एवं अयोध्या का उत्कर्ष उत्तरोत्तर बढ़ता रहा है। घघ्घरदह (घाघरा) एवं सरयू के संगम पर स्वर्ग-द्वार होने के उल्लेख मिलता है, जो वस्तुतः यहाँ का एक प्राचीन और प्रसिद्ध घाट है। गाहड़वाल शासक चन्द्रदेव (सं. 1142-1156 वि.) के चन्द्रावती दान-पत्र में भी इसका उल्लेख मिलता है। एपि-ग्राफिया इण्डिका, जिल्द -14, पृष्ठ 194 तथा आगे। 'अष्टापद पर्वत' पर ऋषभदेव के विहार करने (आवश्यक नियुक्ति-338; आवश्य चूर्णि, पूर्व भाग, 209), निर्वाण प्राप्त करने (आवश्यक नियुक्ति-435) तथा वहाँ उनके पुत्र भरत द्वारा चैत्यों के निर्माण कराने का विवरण प्राचीन जैन-साहित्य में प्राप्त होता है (आवश्यक चूर्णी, पूर्व भाग, पृष्ठ 223)। 11. 14, खटीकान, मुजफ्फरनगर 251 002 (उ.प्र.)
SR No.521859
Book TitleApbhramsa Bharti 2001 13 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2001
Total Pages114
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size8 MB
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