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________________ 97 अपभ्रंश भारती 13-14 'अत्थि इहेव जबुंदीवेदीपे भारहवासे, भउज्झा णाम णयरी सयलणयर गुणोकेया । तीए य दसरहो णाम महाराया परिवसइ । ' अर्थात् इसी जम्बू नामक द्वीप में भारतवर्ष में अयोध्या नाम की नगरी सभी नगरगुणों से युक्त है। उसमें दशरथ नाम का महाराजा रहता है। - इस प्रकार अयोध्या अथवा साकेत एक अनादि नगरी के रूप में प्रतिष्ठा पाती रही है। 'अभिधान-राजेन्द्रकोश' में अयोध्या -कल्प से उद्धृत अयोध्या का उल्लेख इस रूप में है 'अउज्झाए एगहिठयाइं जहा अउज्झा अवज्झा कोसला विणीया साकेयं इक्खागु- भूमी रामपुरी ।' अर्थात् अयोध्या के नाम इस प्रकार हैं 6 - 8 अयोध्या, अवध्या, कोसला, विनीता, साकेत, इक्ष्वाकुभूमि और रामपुरी। उक्त नामों में 'विनीता'' जैनों का दिया हुआ नाम है। 'अयोध्या' वीरता सूचक है क्योंकि कोई भी शत्रु उसके विरुद्ध युद्ध करने का साहस नहीं कर सकता था । अवध्या नाम उसकी अहिंसावृत्ति का 1. सूचक है, जहाँ कोई जीववध्य नहीं माना जाता। कोसला, कोसल जनपद के कारण है और साकेत' वैकुण्ठ लोक का भी नाम होने से अवतारवाद का सूचक रहा है। इक्ष्वाकुभूमि से राजवंश का संकेत मिलता और रामपुरी" वैष्णवों का विशेष प्रिय नाम है, जो राम-भक्ति की पुरातन परम्परा को प्रमाणित करता है । आगे इस नगरी को सरयू तट पर स्थित बताया गया है। 'एसा पुरी अउज्झा, सरउजलाभिसिच्चमाण- गढ-भित्ती । ' अर्थात् यह अयोध्या वह नगरी है, जिसके दुर्गों की दीवारें सरयू नदी के जल से सिंचती रहती हैं। 'अयोध्या कल्प' में यह भी उल्लेख है 'सरउ नईए - उत्तर दिसाए बारसहिं जोअणेहिं अट्ठावय-तरावरो... ।' • अर्थात् सरयू नदी की उत्तर दिशा में बारह योजन पर अष्टापद" नाम का पर्वत है । अतः इस तथ्य की खोज की जानी चाहिए कि क्या इतनी दूरी पर ऐसा कोई स्थान है ? - प्राकृत की अपेक्षा अपभ्रंश के काव्यों में अयोध्या का विशेष उल्लेख मिलता है । महाकवि स्वयंभू ने 'पउमचरिउ' में इस नगरी का बड़े विस्तार से वर्णन किया है। उन्होंने आरम्भ में भरत द्वारा दिग्विजय कर अयोध्या में लौटने का चित्रण इस प्रकार किया है - सट्ठिहुँ वरिस सहासहिं पुण्ण जयासहिं भरहु अउज्झ पईसरइ । णव- णिसियर-धारउ कलह - पियारउ चक्करयणु ण पईसरइ ॥ 4.1 अर्थात् साठ हज़ार वर्षों के बाद विजय की पूर्ण आशावाले भरत अयोध्या को लौटे। परन्तु द्वितीया के चन्द्र के समान, धारवाला युद्ध-प्रिय श्रेष्ठ चक्र अयोध्या में प्रवेश नहीं कर रहा था। तात्पर्य यह है कि यहाँ बाहुबली पर विजय न पाने के कारण भरत की दिग्विजय
SR No.521859
Book TitleApbhramsa Bharti 2001 13 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2001
Total Pages114
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size8 MB
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