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________________ अपभ्रंश भारती 13-14 अक्टूबर 2001-2002 प्राकृत तथा अपभ्रंश ग्रन्थों में अयोध्या - श्री वेदप्रकाश गर्ग ___ उत्तर कोशल की अयोध्या नगरी समस्त आश्चर्यों का निधान, यथा नाम तथा गुण रही है- 'सर्वाश्चर्य निधानमुत्तर कौशलेष्वयोध्यति यथार्थाभिधाना नगरी' - (कवि धनपाल)। सरयू नदी के दक्षिणी तट पर स्थित अयोध्या की गणना भारत की प्राचीनतम महानगरियों एवं परमपावन धर्म-स्थानों में की जाती हैं। इस धार्मिक नगरी को मोक्षदायिनी नगरियों में प्रथम स्थान प्राप्त है - अयोध्या-मथुरा-माया-काशी-काञ्ची-ह्यवन्तिका। पुरी-द्वारावती-चैव-सप्तैता मोक्षदायिकाः॥ प्राचीन भारतीय साहित्य में इस महानगरी अयोध्या के अनेक वर्णन प्राप्त हैं। अयोध्या की गणना दस प्राचीन महा-राजधानियों एवं उत्तरापथ की पाँच महानगरियों में की गई है। भारत की इस आद्यनगरी का निर्माण स्वयं आदिराज मनु ने किया था - कोसलो नाम विदितः स्फीतो जनपदो महान् । निविष्टः सरयूतीरे प्रभूतधन धान्यवान् ॥ अयोध्या नाम तत्रास्ति नगरी लोक विश्रुता। मनुना मानवेन्द्रेण पुरैव निर्मिता स्वयं ॥ वाल्मीकि रामायण, बालकाण्ड
SR No.521859
Book TitleApbhramsa Bharti 2001 13 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2001
Total Pages114
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size8 MB
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