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अपभ्रंश भारती
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(2) अमूर्त्त के लिए मूर्त्त विधान / भाव का वस्तु द्वारा
‘संदेश-रासक' में अमूर्त्त प्रस्तुत के लिए मूर्त्त अप्रस्तुत का विधान प्रमुखता से हुआ है। इस अन्तर्गत कहीं सादृश्य के लिए तो कहीं सामर्थ्य के लिए और कहीं-कहीं प्रभाव-साम्य के लिए मूर्त-विधान हुआ है।
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(क) सादृश्यमूलक
कवि ने अमूर्त्त प्रस्तुत 'देह की कांति' के लिए दो मूर्त अप्रस्तुतों- 'कुंकुम' तथा 'स्वर्ण' का प्रयोग वर्ण-साम्य दिखाने के लिए किया है । द्रष्टव्य है - कुंकुमकणय सरिच्छ कंति ॥
यहाँ कवि का उद्देश्य वर्ण-साम्य के माध्यम बिम्बोद्भावना है।
द्वितीय प्रक्रम में 48वें छन्द में कवि ने अमूर्त्त प्रस्तुत नायिका की हँसी के लिए मूर्त अप्रस्तुत सूर्य का प्रयोग किया है; यथा
अवर कावि सुवियक्खिण हिवसंतिय विमलि,
णं ससि सूर णिवेसियर इ डयलि ॥7
यहाँ भी रंग- साम्य (हँसी तथा सूर्य दोनों का रंग शुभ-कनकाभ माना गया है) के माध्यम बम्बद्भावना हुई है।
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'संदेश - रासक में सादृश्यमूलक अमूर्त मूर्त्त विधान के और प्रयोग लक्षित नहीं हैं (ख) साधर्म्यमूलक
सादृश्यमूलक की तुलना में इसके प्रयोग संदेश रासक' में अधिक मिलते हैं; यथा नायिका के विरहाकुल 'हृदय' (अमूर्त्त प्रस्तुत) के लिए दीपक की लौ में जलने वाले 'पतंग' ( मूर्त्त अप्रस्तुत ) ( हियउ... पडिउ पतंगु णाउ दीवंतरि ॥ 28 ) के प्रयोग के माध्यम से कवि ने व्यापार-साम्य से बिम्बोद्भावन किया है।
इसीतरह, अमूर्त्त प्रस्तुत 'विरह' के लिए मूर्त्त अप्रस्तुत 'चोर' (मह सामिय वक्खरु हरि गउ तक्खर) 29 हृदय (अमूर्त प्रस्तुत ) के लिए 'रत्ननिधि सागर' (मूर्त्त अप्रस्तुत); (मह हिययं रयणनिही) 30 तथा प्रवासी पति के 'प्रेम' ( अमूर्त प्रस्तुत ) के लिए 'गुरू मंदर' पर्वत (मूर्त अप्रस्तुत) (महियं गुरू मंदरेण तं णिच्चं ) 31, नायिका की 'बेचैनी' ( अमूर्त प्रस्तुत) के लिए मूर्त्त अप्रस्तुत ' क्षार' कोयला (अणरइछारू छित्तु) 32, उसके विरह के लिए क्रमश: 'अग्नि' (मूर्त्त अप्रस्तुत) तथा 'करपत्र - आरा (विरहाणल) 3 (दुसहु विरह करवत्तिहि ) 34, उसकी 'गति' (अमूर्त्त प्रस्तुत ) के लिए हंस (मूर्त्त अप्रस्तुत) (हंस सरिस सरलाइ गयहि लीलंति यह) 35, ‘गंधवह' - वायु (अमूर्त प्रस्तुत) के लिए मूर्त अप्रस्तुत 'हाथी के कान' (कुंजर-स :-सवण सरिच्छ पहल्लिर गंधवहि ) 36 इत्यादि प्रयोग साधर्म्यमूलक अमूर्त मूर्त्त विधान के सुन्दर उदाहरण हैं ।
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