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________________ 13 अपभ्रंश भारती - 11-12 लगे। उस लज्जावती ने जैसे-जैसे अपने स्तनों को हाथों से आवृत्त कर लिया, मानो दो कमलों ने स्वर्ण-कलश-युगल को ढंक लिया हो। स्वर्णाभा लिये गोरे स्तनों (मूर्त प्रस्तुत) के लिए 'स्वर्ण कलश' (मूर्त अप्रस्तुत) तथा 'गोरे हाथों' (मूर्त प्रस्तुत) के लिए 'कमल' (मूर्त अप्रस्तुत) के प्रयोग में जहाँ आकृति-साम्य (स्तन तथा कलश दोनों गोलाकार होते हैं) है, वहाँ रंग-साम्य (गुराई) भी। इसतरह, सादृश्यमूलक अप्रस्तुतविधान में न केवल वैविध्य है बल्कि सटीकता भी। (ख) साधर्म्यमूलक ___ इससे भी दो भेद किये जा सकते हैं - (अ) गुण-साम्यमूलक तथा (आ) क्रिया/व्यापारसाम्यमूलक। (अ) गुण-साम्यमूलक संदेश-रासककार ने नायिका के कुटिल अलकों (मूर्त प्रस्तुत) के लिए 'पिशुनजन' अर्थात् चुगलखोर (मूर्त अप्रस्तुत) का प्रयोग किया है; जैसे - अझकुडिल माई पिहुणा...... अलया॥ प्रस्तुत तथा अप्रस्तुत के बीच साम्य का आधार कुटिलता है। जिस तरह चुगलखोर व्यक्ति का सामान्य धर्म उसकी कुटिलता है, उसीतरह नायिका के मस्तक के बाल कुटिलता के कारण ही शोभा और प्रशंसा पाते हैं। अलकों के लिए 'पिशुन' का प्रयोग अन्यत्र दुर्लभ है। यह कवि की मौलिक कल्पना-क्षमता का प्रमाण है। इसीतरह नायिका के स्तन-द्वय (मूर्त प्रस्तुत) के लिए क्रमशः 'सुजन' और 'खल' (मूर्त अप्रस्तुत) का औपम्य-विधान हुआ है। उदाहरण द्रष्टव्य है - __सिहणा सुयण-खला इव थड्ढा निच्चुन्नया य मुहरहिया।" ___ संयोग-बेला में ये स्तन 'सुजन' (सज्जन) की तरह सुखद प्रतीत होते हैं, जबकि वियोगकाल में 'खल' (दुष्ट) की तरह दुःखद। सुखदता तथा दुखदता - ये दोनों गुण यहाँ अप्रस्तुतविधान के आधार बने हैं। रमणी की आँखों (मूर्त प्रस्तुत) के लिए 'मृग' (अमूर्त अप्रस्तुत) का प्रयोगकर कवि ने प्रस्तुत तथा अप्रस्तुत - दोनों के धर्म विशेष 'चंचलता' की ओर पाठकों का ध्यान आकृष्ट किया है। पुनः उसे राजमरालगामिनी तथा हंसगामिनी21 बताकर कवि ने दोनों के धर्म – 'मंथर गति' को साम्य का आधार बनाया है। (आ) क्रिया-साम्यमूलक द्वितीय प्रक्रम के 83वें छन्द में कवि ने काम-विद्ध नायिका की तुलना शिकारी के बाणों से विद्ध 'हिरणी' से की है; यथा - । वयण णिसुणेवि मणमत्थसरवद्धिया, मयउसरमुक्क णं हरिणि उत्तट्ठिया।
SR No.521858
Book TitleApbhramsa Bharti 1999 11 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Gopichand Patni
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1999
Total Pages114
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size9 MB
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