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अपभ्रंश भारती - 11-12
प्रदर्शन किया है। इनके काव्य-निबन्धन में प्रांजलता और प्रवाहशीलता, दोनों ही उदात्त गुणों का सहज समावेश हुआ है । फलतः, इस काव्य में शब्द, अर्थ और भाव - तीनों का आनुक्रमिक साहचर्य मिलता है । महाकवि ने नागकुमार के चरित के माध्यम से केवल उत्कृष्ट भारतीय जीवन का ही चित्रण नहीं किया है, अपितु कथा को शाश्वतता प्रदान करनेवाली आदर्श काव्यभाषा का भी भव्यतम प्रतिमान प्रस्तुत किया है। ___ सहजता और सरसता ‘णायकुमारचरिउ' की भाषा की ततोऽधिक उल्लेखनीय विशेषता है। यहाँ तक कि समासबहुल गौडी शैली में निबद्ध काव्यभाषा की अलंकृत पदशय्या अपनी तरलता की मोहकता से सहृदय की भावचेतना को सहसा आविष्ट कर लेनेवाली है। इस सन्दर्भ में राजगृह के विपुलाचल पर अवस्थित महावीर जिनेन्द्र की स्तुति की कतिपय काव्यपंक्तियाँ उदाहरणीय हैं - सुरणरविसहरवरखयरसरणु,
कुसुमसरपहरहरसमवसरणु। पइसरइ णिवइ पहु सरइथुणइ, बहुभवभवकयरयपडलु धुणइ। जय थियपरिमियणहकुडिलचिहुर, जय पयणयजणवयणिडयविहुर। जय समय समयमयतिमिरमिहिर, जय सुरगिरिथिर मयरहरगहिर। जय तियसमउडमणिलिहियचलण, जय विसमविसयविसविडविजलण। जय णरयविवरगुरुवडण धरण, जय समियकलुस जरमरणहरण। जय दसदिसिगयजसपसरधवल, णियणयबलविणिहयकुणययवल। जय खमदमसमजमणिवहणिलय, गयणयलगरुय मुअणयलतिलय।
जय गुणमणिणिहि परिपलियहरिस, जय जय जिणवर जय परमपुरिसा। (1.11) महाकवि पुष्पदन्त प्रसंगानुसार कोमल के साथ ही परुष बिम्बों के विधान में भी अतिशय निपुण हैं । इस सन्दर्भ में, प्रवाहशील काव्यभाषा के माध्यम से निर्मित संग्राम के दृश्य का परुष बिम्ब द्रष्टव्य है -
ता णिठुरकर, भिउडिभयंकर। वइरिखयंकर, णियवइसंकर। झसमुग्गरकर, धाइय णरवर। परजयसिरिहर, मयणह किंकर।.... जायउ भंडणु, करसिरखंडणु। डयरवियारणु, पहरणवारणु। असि खणखणर व, हणरवरउरव। मयगलपेल्लणु, लोहियरेल्लणु। रहवरखंचणु,
केसालुंचणु। पाडियधयवडु, सूडियहयथडु। छुरियायड्डणु, मच्छरघणघणु। णिरु णिब्भिच्चिहिं, जुज्झविभिच्चिहिं। (5.4)