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________________ अपभ्रंश भारती 1 लेने से नहीं चूकते थे । इनमें क्षत्रियोचित वीरता तथा पराक्रम की भावना तो सदैव होती दिखाई देती थी, परन्तु राष्ट्रीयता की भावना का सर्वथा अभाव था । ग्यारहवीं तथा बारहवीं शताब्दी में उत्तरी भारत की शक्ति और भी अधिक अस्त-व्यस्त हो गयी थी । यद्यपि मालवा का राजा भोज अपनी वीरता के लिए भारत में बहुत प्रसिद्ध है तथा चेदि राजा कर्ण भी उस समय का बहुत प्रतापी राजा था, तथापि ग्यारहवीं शताब्दी के शुरू में महमूद गजनवी का आक्रमण हुआ। उस समय तक प्रतिहारों की शक्ति बहुत क्षीण हो चुकी थी । अत: उनके आधिपत्य में रहनेवाले चन्देल (कालिन्जर), कलचुरी (त्रिपुरी) और चौहान ( सांभर, अजमेर ) स्वतन्त्र हो गये । ये स्वतन्त्र तो अवश्य हो गये थे, परन्तु इनमें इतनी भी सामर्थ्य नहीं थी कि किसी भी बाह्य आक्रमण को रोक सकें। इसी समय उत्तर भारत में पालों, गहड़वारों, चालुक्यों, चन्देलों और चौहानों के अतिरिक्त गुर्जर, सोलंकी तथा मालवा के परमारों ने भी अपने-अपने स्वतन्त्र राज्य स्थापित कर लिये तथा इस बात का भरसक प्रयत्न करने लगे कि वे चक्रवर्ती राजा के रूप में प्रतिष्ठित हों और अन्य सभी राजा उनके चक्रवर्तित्व को स्वीकार कर लें। यही कारण था कि उस समय भिन्नभिन्न राज्यों में परस्पर संघर्ष एवम् प्रतिस्पर्धा का दौर चलता रहता था । ये सभी राजा एवम् राज्य व्यक्तिगत स्तर पर पर्याप्त शक्तिशाली एवम् सुदृढ़ थे और यदि इनमें संगठन होता तो भारतीय स्वतन्त्रता अक्षुण्ण होती तथा अन्त में उन्हें तुर्कों और पठानों के सामने झुकना नहीं पड़ता । हालांकि इसी समय अजमेर के चौहानों में से बीसलदेव और पृथ्वीराज ने तुर्कों को झुकाने का भरपूर प्रयास करते हुए भारतीय अस्मिता को बनाये रखने हेतु अदम्य साहस का परिचय दिया था। - 3 11-12 1 तेरहवीं शताब्दी तक पहुँचते-पहुँचते भारतीय प्रतिष्ठा और भी मलिन हो गयी क्योंकि तब तक हिन्दू जाति, जातिगत संकीर्णता के क्षेत्र में विभक्त हो गई थी । यही भारत का दुर्भाग्य था कि इतने पराक्रमी एवम् साहसी राजाओं के होते हुए भी उसे समय-समय पर दुर्दिनों का सामना करना पड़ा और यदि इस समय भारतीय राजाओं में राजनीतिक चेतना विद्यमान होती तथा वे सभी अपने आपको एक राष्ट्र और एक ही आर्य धर्म का सदस्य मानते तो वे संगठित रूप से विदेशी प्रभावों एवम् आक्रमणों का मुँहतोड़ जवाब दे सकते थे । इस समय तक भारतीय सभ्यता में भी पहले जैसी सजीवता एवम् सप्राणता का अभाव-सा हो गया था अन्यथा शकों और हूणों की तरह तुर्कों को भी अपना बना लेती । धार्मिक आधार - राजनीतिक स्थिति के आकलन के उपरान्त ज्ञात होता है कि अपभ्रंश काल में ब्राह्मण, जैन और बौद्ध धर्म के साथ ही इस्लाम धर्म का भी प्रचार हो गया। फलत: बौद्ध, जैन तथा ब्राह्मण धर्मावलम्बियों की भाँति इस्लाम धर्म के रचनाकारों ने भी अपभ्रंश में रचना की। उल्लेखनीय है कि बौद्ध धर्म हर्षवर्धन के राज्यकाल में ही ऐसी अवनतावस्था को प्राप्त हो गया था कि उस समय के एक चीनी यात्री युवानच्वाङ् ने सिन्ध प्रान्त के बौद्धों की स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा कि वहाँ के भिक्खु भिक्खुनी निठल्ले, कर्त्तव्यविमुख और पतित हो गये थे। बौद्ध धर्म सर्वप्रथम दो विभागों में विभक्त हुआ - हीनयान और महायान । कुछ समय
SR No.521858
Book TitleApbhramsa Bharti 1999 11 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Gopichand Patni
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1999
Total Pages114
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size9 MB
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