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अपभ्रंश भारती - 9-10 वाचिक एवं आंगिक चेष्टाओं से भीतर जागे ये भाव बाहर प्रकट होते हैं उन्हें काव्य-नाट्य में अनुभाव कहते हैं। इनकी अनुभाव संज्ञा इसलिए है कि ये विभावों द्वारा रसास्वाद रूप में अंकुरित किये गये सामाजिक के रत्यादि स्थायी भाव को रस.रूप में परिणत करने का अनुभवन व्यापार करते हैं। अनुभावों की चार श्रेणियाँ हैं - 1. चित्तारम्भक, जैसे - हाव, भाव आदि, 2. गात्रारम्भक, जैसे - लीला, विलास, विच्छित्ति आदि, 3. वागारम्भक, जैसे - आलाप, विलाप, संताप आदि तथा 4. बुद्ध्यारम्भक, जैसे - रीति, वृत्ति आदि।
अनुभाव मन के रहस्य को उद्घाटित करते हैं, जैसे-किसी युवक और युवती के मन में एक-दूसरे को देखकर प्रेम उत्पन्न होता है। तो पहले वे एक-दूसरे को एकटक देखते हैं, फिर चोरी-चोरी देखते हैं, मुड़-मुड़कर देखते हैं, मुस्कराते हैं, युवती आँखें झुका लेती है, मुँह फेर लेती है, पैर के अंगूठे से धरती कुरेदने लगती है, आँचल या बालों की लटों को सँभालने लगती है, प्रेम को छिपाने के लिए युवक के पास से दूर जाने की चेष्टा करती है, किन्तु कोई बहाना बना कर रुक जाती है, उदाहरणार्थ 'अभिज्ञान शाकुन्तलं' में शकुन्तला दुष्यन्त को यह जताने के लिए कि वह उसकी तरफ आकृष्ट नहीं है, दुष्यन्त के पास से दूर जाने का उपक्रम करती है, किन्तु दो-चार कदम चल कर ही कांटे चुभने का बहाना बना कर रुक जाती है और मुड़मुड़कर दुष्यन्त को देखने लगती है। इसके बाद पुन: जाने लगती है, किन्तु थोड़ी दूर जा कर पुनः झाड़ियों में दुपट्टा उलझने का बहाना बना कर रुक जाती है और दुपट्टा सुलझाने के छल से दुष्यन्त से आँखें चार करने लगती है। इसी प्रकार (प्रेमानुरक्त) युवक और युवती किसी अन्य को संबोधित कर अपने मन का अभिप्राय प्रकट करते हैं, फिर कुछ निकट आने पर प्रेमालाप करते हैं, युवक युवती के सौन्दर्य की प्रशंसा करता है, इसके बाद वे एक-दूसरे को प्रेम-संदेश भेजते हैं, प्रेम-पत्र लिखते हैं, किताबों में रखकर भिजवाते हैं, इन चेष्टाओं से दूसरों को उनके प्रेम का पता चल जाता है। कवि इन चेष्टाओं को दर्शाकर ही नायक-नायिकादि के प्रेम आदि भावों को प्रदर्शित करता है। काव्य में निबद्ध होने पर ये अनुभाव कहलाते हैं। इन्हीं अनुभावों को ध्यान में रखकर कहा गया है "इश्क और मुश्क छिपाये नहीं छिपते" रहीम ने भी कहा है
खैर खून खांसी खुशी, बैर प्रीति अभिमान।
रहीमन दाबे न दबै, जानंत सकल जहान॥ मुख की आकृति ही मन के भावों को अभिव्यक्त कर देती है। जंबूसामि चरिउ में कवि ने अनुभाव योजना द्वारा पात्रों के रत्यादि भावों को अनुभूतिगम्य बनाया है। यहाँ इन्हीं अनुभावों पर बिचार किया जा रहा है।