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अपभ्रंश भारती 9-10
पकड़ता है । इसका पूर्वार्द्ध जितना सहज-सरल, सरस और रोचक है, उत्तरार्द्ध उतना ही दुरूह और अ-सहज है। हाँ, अंत में फिर धार्मिक प्रयोजन में सहजता का समाहार हो जाता है ।
'करकण्डचरिउ' के संपूर्ण कथानक में प्राय: पचास से अधिक कथानक - हुआ है; जिन्हें निम्न प्रकार वर्गीकृत किया जा सकता है
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- रूढ़ियों का प्रयोग
(1) धर्म -गाथाओं से संबद्ध - ये वे कथानक - रूढ़ियाँ होती हैं जिनमें धार्मिक, अवतारों, देवी-देवताओं के प्राकट्य और अलौकिक क्रिया-कलाप तथा विरोधी आसुरी शक्तियों पर उनकी विजय का निरूपण है। यहाँ ऐसी अनेक रूढ़ियाँ दृष्टव्य हैं, यथा -
(1) मातंग द्वारा सद्यः उत्पन्न बालक को हाथ में लेना और अपने घर लाकर पालन-पोषण करना । (दूसरी संधि )
(2) मंत्रों द्वारा राक्षस का दर्प खंडित होना और राक्षस का किन्नर बनना । (दूसरी संधि )
(3) खेचर द्वारा करकंड को नीति का ज्ञान कराना। (दूसरी संधि)
(4) खेचरी विद्या से युद्ध । (तीसरी संधि)
(5) खड्गलता से खेचरी - विद्या की शक्ति क्षीण होना । (तीसरी संधि)
(6) पर्वत की सहस्रस्तंभ गुफा की बामी पर श्वेतवर्ण हाथी का नित्य पूजन करने आना। (चौथी संधि)
(7) बामी को खुदवाकर जिन-बिम्ब को पाना । (चौथी संधि)
(8) जिन-सिंहासन में जलवाहिनी को रोकने के लिए एक गाँठ का होना और उसे तुड़वाना। (चौथी संधि)
(१) किसी देव का आकर राजा को भय मुक्त करना । ( चौथी संधि)
(10) जिन प्रतिमा का स्थिर होना । (पाँचवीं संधि)
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(11) राजा के विलाप करने पर एक विद्याधर का प्रकट होना और परिचय देना। (पाँचवीं संधि)
(12) पूर्व जन्म की कथा । (छठी संधि)
(13) पद्मावती देवी की पूजा-अर्चना और वर पाना। (सातवीं संधि)
(14) करकंड-द्वारा दक्षिण के राजाओं के मुकुटों का पैरों से रौंदा जाना, पर उनके अग्रभाग में जिन - प्रतिमा को देखना और दुःखी होने पर वैराग्य लेना । ( आठवीं संधि)
(2) लोक - कहानियों में प्रयुक्त ये कथानक - रूढ़ियाँ लोक-जीवन के विश्वास और व्यवहार पर आधृत होती हैं इस कारण से बड़ी रोचक एवं सरस होती हैं, यथा
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