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________________ प्रकाशकीय अपभ्रंश भाषा और साहित्य के अध्येताओं के समक्ष अपभ्रंश भारती का नवाँ-दसवाँ अंक सहर्ष प्रस्तुत है। ___ 'अपभ्रंश भाषा' साहित्यिक भाषा के गौरवशाली पद पर छठी शताब्दी में आसीन हुई यद्यपि अपभ्रंश में प्रथम शती से रचनाएँ होती रही है। अपभ्रंश का महत्वपूर्ण साहित्य 8वीं शती से 13-14वीं शती तक रचा गया। 9वीं से 13वीं शताब्दी के युग को 'अपभ्रंश' का 'स्वर्णयुग' कहा जा सकता है। अपभ्रंश की अन्तिम रचना है भगवतीदास रचित (16वीं शती) 'मृगांकलेखा चरित।' अपभ्रंश के साहित्यिक महत्व को समझते हुए दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्रीमहावीरजी द्वारा 'अपभ्रंश साहित्य अकादमी' की स्थापना सन् 1988 में की गई। अपभ्रंश भाषा के अध्ययनअध्यापन को समुचित दिशा प्रदान करने के लिए 'अपभ्रंश रचना सौरभ', 'अपभ्रंश काव्य सौरभ', 'प्राकृत रचना सौरभ', 'पाहुडदोहा चयनिका' आदि पुस्तकें प्रकाशित की गई हैं। पत्राचार के माध्यम से अखिल भारतीय स्तर पर 'अपभ्रंश सर्टिफिकेट पाठ्यक्रम' व 'अपभ्रंश डिप्लोमा पाठ्यक्रम' विधिवत् चलाए जा रहे हैं। अपभ्रंश में मौलिक लेखन के प्रोत्साहन के लिए 'स्वयंभू पुरस्कार' भी प्रदान किया जाता है। ___ अपभ्रंश साहित्य पर विभिन्न दृष्टियों से अपने विचारों को प्रस्तुत करते हुए जिन विद्वान लेखकों ने अपनी रचनाएँ भेजकर प्रस्तुत अंक का कलेवर बनाया है हम उनके आभारी हैं। पत्रिका के सम्पादक, सहयोगी सम्पादक एवं सम्पादक मण्डल धन्यवादार्ह है । अंक के मुद्रण के लिए जयपुर प्रिन्टर्स प्राइवेट लिमिटेड, जयपुर भी धन्यवादाह है। प्रकाशचन्द्र जैन नरेशकुमार सेठी अध्यक्ष मंत्री प्रबन्धकारिणी कमेटी, दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्रीमहावीरजी
SR No.521857
Book TitleApbhramsa Bharti 1997 09 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Gopichand Patni
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1997
Total Pages142
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size10 MB
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